पृष्ठ:समाजवाद और राष्ट्रीय क्रान्ति.pdf/११०

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( ८३ ) कांग्रेस पर जानबूझकर इस प्रश्न की अवहेलना करने का आरोप नहीं लगाने । उल्टे हम तो समझते हैं कि कांग्रेस ही एक राजनैतिक संस्था है जिसने जन समुदाय से सम्पर्क स्थापित करने का प्रयत्न किया है। परन्तु उसका तरीका ठीक नहीं रहा और इसीलिये उसके प्रयत्न उनो फलदायक नहीं हुए जितने होने चाहिये थे । वर्तमान समय में कांग्रेस की नीति में भारी परिवर्तन की आवश्यकता है। जनता को गजनैतिक क्षेत्र में लाने के लिए उससे याथिक धरातल पर बाने करनी होगी और उसके पहिले कि उसका उपयोग साभाज्यवाद- विरोधी गंधर्म में किया जा सके उसे वी के रूप में संगठिन करना होगा । हम देखते हैं कि विदेशी सामाज्यवाद ने अपनी स्थिति को मुड़ करने के लिए देश को प्रतिक्रियावादी शक्तियों राजा-महाराजाओं जमीदारों और यूँ जीपतियों से एका कर लिया है। इसलिए इमार लिए अब और भी आवश्यक हो गया है कि हम इस नवीन गृह विरुद्ध देश के समस्त अग्रगामी तत्वों को सगृहीत करे और निम्नमध्यवर्ग श्रमिकों और कृषकों का एक सयुक्त मोर्चा बनाये । भारत में पूँजीवादी वर्ग मध्यवर्गीय जन-तन्त्रात्मक क्रान्ति का नेतृत्व करने में असमर्थ है। उसकी सामाजिक परिधि बहुत सीमित है श्रार इसलिए वह अकेला कुछ नहीं कर सकता। पिर भारत का मामन्तशाही ग्रामीण अर्थ व्यवस्था अपना प्रभाव सम्पूर्ण नाराज सम्बन्धों पर डालती है । पूँजीवाद इसलिथे भूमिपतियों में मिला हुना है और उससे सामन्तशाही को नष्ट करने की अाशा नहीं जा सकती। अतः भारत में शोषित वर्ग को वह कार्य भी करना पड़ेगा जो पश्चिम में मध्यवर्ग ने सम्पादित कर लिया था। भारत में भूमिपति ब्रिटिश शासन के बनाये हुए हैं और ये स्वभावतः सामाज्यवाद का महारा टटोलते हैं । उनका सभी वर्ग--