एक ने हाथ नहीं उठाया। इनके जो महात्मा हैं,वह बड़े भारी फ़कीर हैं। उनका हुक्म है कि चुपके से मार खा लो,लड़ाई मत करो।
यों बातें करते-करते दोनों ताड़ीखाने के द्वार पर पहुँच गये। एक स्वयंसेवक हाथ जोड़कर सामने आ गया और बोला--भाई साहब,आपके मज़हब में ताड़ी हराम है।
मैकू ने बात का जवाब चौटे से दिया। ऐसा तमाचा मारा कि स्वयंसेवक की आँखों में खून आ गया। ऐसा मालूम होता था,गिरा चाहता है। दूसरे स्वयंसेवक ने दौड़कर उसे सँभाला। पांचों उँगलियों का रक्तमय प्रतिबिम्ब झलक रहा था।
मगर वालंटियर तमाचा खाकर भी अपने स्थान पर खड़ा रहा। मैकू ने कहा-अब हटता है कि और लेगा ?
स्वयंसेवक ने नम्रता से कहा-अगर आपकी यही इच्छा है,तो सिर सामने किये हुए हूँ। जितना चाहिए.मार लीजिए। मगर अन्दर न जाइए।
यह कहता हुआ वह मैक के सामने बैठ गया।
मैकू ने स्वयंसेवक के चेहरे पर निगाह डाली। उसकी पांचों उँगलियों के निशान झलक रहे थे। मैकू ने इसके पहले अपनी लाठी से टूटे हुए कितने ही सिर देखे थे,पर आज की-सी ग्लानि उसे कभी न हुई थी। वह पांचों उँगलियों के निशान किसी पंचशून की भांति उसके हृदय में चुभ रहे थे।
कादिर चौकीदारों के पास खड़ा सिगरेट पीने लगा। वहीं खड़े-खड़े बोला-अबे,खड़ा देखता क्या है,लगा कसके एक हाथ !
मैकू ने स्वयंसेवक से कहा-तुम उठ जाओ,मुझे अन्दर जाने दो।
'आप मेरी छाती पर पाव रखकर चले जा सकते हैं।' .
'मैं कहता हूँ,उठ जाओ,मैं अन्दर ताड़ी न पीऊँगा, एक दूसरा ही काम है।'
उसने यह बात कुछ इस दृढ़ता से कही कि स्वयंसेवक उठकर रास्ते से हट गया। मैकू ने मुसकिराकर उसकी ओर ताका । स्वयंसेवक ने फिर हाथ जोड़कर कहा--अपना वादा भल न जाना।