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जुलूस
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से कही जाती हैं। स्वार्थ दिल की गहराइयों में बैठा होता है। वही गम्भीर विचार का विषय है।

मगर मिट्रन बाई के मुख पर हर्ष की कोई रेखा न नज़र आई,ऊपर की बातें शायद गहराइयों तक पहुंच गई थीं। बोलीं-ज़रूर कर लिया होगा और शायद तुम्हें जल्द तरकी भी मिल जाय ; मगर बेगुनाहों के खून से हाय रँगकर तरक्की पाई, तो क्या पाई! यह तुम्हारी कारगुज़ारी का इनाम नहीं,तुम्हारे देश-द्रोह की कीमत है। तुम्हारी कारगुजारी का इनाम तो तब मिलेगा,जब तुम किसी खूनी को खोज निकालोगे, किसी डूबते हुए आदमी को बचा लोगे।

एकाएक एक सिपाही ने बरामदे में खड़े होकर कहा-हुजूर,यह लिफ़ाफ़ा लाया हूँ। वीरबलसिंह ने बाहर निकल कर लिफ़ाफ़ा ले लिया और भीतर की सरकारी चिट्ठी निकालकर पढ़ने लगे। पढ़कर उसे मेज़ पर रख दिया।

मिट्ठन ने पूछा--क्या तरक्की का परवाना आ गया?

वीरबल सिंह ने झंपकर कहा--तुम तो बनाती हो ! आज फिर कोई जुलूस निकलनेवाला है। मुझे उसके साथ रहने का हुक्म हुआ है।

मिट्ठन-फिर तो तुम्हारी चाँदी है, तैयार हो जाओ। श्राज फिर वैसे ही शिकार मिलेंगे। खूब बढ़कर हाथ दिखाना! डी. एस. पी. भी ज़रूर आयेंगे। अबकी तुम इन्सपेक्टर हो जानोगे। सच!

वीरबल सिंह ने माथा सिकोड़कर कहा--कभी-कभी तुम बे-सिर-पैर की बातें करने लगती हो। मान लो,मैं जाकर चुपचाप खड़ा रहूँ,तो क्या नतीजा होगा। मैं नालायक समझा जाऊँगा और मेरी जगह कोई दूसरा आदमी भेज दिया जायगा। कहीं शुबहा हो गया कि मुझे स्वराज्य-वादियों से सहानुभति है,तो कहीं का न रहूँगा। अगर बर्खास्त न हुआ तो लैन की हाजिरी तो हो ही जायगी। आदमी दुनिया में रहता है,उसी का चलन देखकर काम करता है। मैं बुद्धिमान् न सही ; पर इतना जानता हूँ कि ये लोग देश और जाति का उद्धार करने के लिए ही कोशिश कर रहे हैं। यह भी जानता हूँ कि सरकार इस ख़याल को कुचल डालना चाहती है। ऐसा