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समर-यात्रा
 

ली और इतने ज़ोर से दबाई कि उसकी आखें बाहर निकल आई। मालूम होता था,उसके हाथ फ़ौलाद के हो गये हैं।

सहसा मिसेज़ सकसेना ने आकर उसका फ़ौलादी हाथ पकड़ लिया और भवें सिकोड़कर बोलीं-छोड़ दो इसकी गर्दन ! क्या इसकी जान ले लोगे ?

जयराम ने और ज़ोर से उसकी गर्दन दबाई और बोला -- हाँ,ले लूँगा।ऐसे दुष्टों की यही सज़ा है।

मिसेज़ सकसेना ने अधिकार-गर्व से गर्दन उठाकर कहा -- आपको यहाँ आने का कोई अधिकार नहीं है।

एक दर्शक ने कहा-ऐसा दबाओ बाबूजी कि साला ठण्डा हो जाय। इसने देवीजी को ऐसा ढकेला कि बेचारी गिर पड़ीं। हमें तो बोलने का हुक्म नहीं है, नहीं तो हड्डी तोड़कर रख देते।

जयराम ने शराबी की गर्दन छोड़ दी। वह किसी बाज़ के चंगुल से छुटी हुई चिड़िया की तरह सइमा हुआ खड़ा हो गया। उसे एक धक्का देते हुए उसने मिसेज़ सकसेना से कहा-आप यहाँ से चलती क्यों नहीं ? आप जायँ,मैं बैठता हूँ ; अगर छटाँक शराब बिक जाय, तो मेरा कान पकड़ लीजिएगा।

उसका दम फूलने लगा। आँखों के सामने अँधेरा छा रहा था। वह खड़ा न रह सका। ज़मीन पर बैठकर रूमाल से माथे का पसीना पोंछने लगा।

मिसेज़ सकसेना ने परिहास करके कहा-आप कांग्रेस नहीं हैं कि मैं आपका हुक्म मानूँ। अगर आप यहाँ से न जायँगे, तो मैं सत्याग्रह करूँगी।

फिर एकाएक कठोर होकर बोलीं -- जब तक कांग्रेस ने इस काम का भार मुझ पर रखा है,आपको मेरे बीच में बोलने का कोई हक़ नहीं है। आप मेरा अपमान कर रहे हैं। कांग्रेस-कमेटी के सामने आपको इसका जवाब देना होगा।

जयराम तिलमिला उठा। बिना कोई जवाब दिये लौट पड़ा और वेग से घर की तरफ़ चला ; पर ज्यों-ज्यों आगे बढ़ता था,उसकी गति मन्द