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जेल
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से दूर रहती थी। उसके जाति-प्रेम का वारापार न था। इस रंग में पगी हुई थी; पर अन्य देवियां उसे घमंडिन समझती थीं और उपेक्षा का जवाब उपेक्षा से देती थीं। मृदुला को हिरासत में आये आठ दिन हुए थे। इतने ही दिनों में क्षमा को उससे विशेष स्नेह हो गया था। मदुला में वह संकीर्णता और ईर्ष्या न थी, न निन्दा करने की आदत, न शृंगार की धुन, न भद्दी दिल्लगी का शौक। उसके हृदय में करुणा थी, सेवा का भाव था, देश का अनुराग था। क्षमा ने सोचा था, इसके साथ छः महीने आनन्द से कट जायँगे ; लेकिन दुर्भाग्य यहाँ भी उसके पीछे पड़ा हुआ था। कल मृदुला यहाँ से चली जायगी। वह फिर अकेली हो जायगी। यहाँ ऐसा कौन है, जिसके साथ धड़ी भर बैठकर अपना दुःख-दर्द सुनायेगी, देश-चर्चा करेगी ; यहाँ तो सभी के मिजाज़ आसमान पर हैं।

मृदुला ने पूछा-तुम्हें तो अभी आठ महीने बाक़ी हैं, बहन !

क्षमा ने हसरत के साथ कहा-किसी न किसी तरह कट ही जायँगे। बहन; पर तुम्हारी याद बराबर सताती रहेगी। इसी एक सप्ताह के अन्दर तुमने मुझ पर न जाने क्या जादू कर दिया। जब से तुम आई हो, मुझे जेल; जेल न मालूम होता था। कभी-कभी मिलती रहना।

मृदुला ने देखा, क्षमा की आँखें डबडबाई हुई थीं। ढारस देती हुई बोली-ज़रूर मिलूँगी दीदी ! मुझसे तो ख़ुद न रहा जायगा। भान को भी लाऊँगी। कहूँगी-चल तेरी मौसी आई है, तुझे बुला रही है। दौड़ा हुआ आयेगा। अब तुमसे आज कहती हूँ बहन, मुझे यहाँ किसी की याद थी, तो भान की। बेचारा रोया करता होगा। मुझे देखकर रूठ जायगा। तुम कहाँ चली गई। मुझे छोड़कर क्यों चली गई ? जाओ मैं तुमसे नहीं बोलता। तुम मेरे घर से निकल जाओ। बड़ा शैतान है बहन ! छन-भर निचला नहीं बैठता, सबेरे उठते ही गाता है-'भन्ना ऊँता लये अमाला','छोलाज का मंदिल देल में है।' जब एक झंडी कंधे पर रखकर कहता है-'ताली-छलाबं पीना हलाम है।' तो देखते ही बनता है। बाप को तो कहता है-तुम गुलाम हो। वह एक अंग्रेजी कम्पनी में हैं। बार-बार इस्तीफ़ा देने का विचार करके रह जाते हैं; लेकिन गुज़र-बसर के लिए कोई उद्यम