यह लोग इस तरह माननेवाले असामी नहीं हैं। आप इनके सामने जान भी दे दें, तो भी शराब न छोड़ेंगे। हाँ, पुलीस की एक घुड़की पा जायँ तो फिर कभी इधर भूलकर भी न आयें।
खानसामा ने चौधरी की ओर तिरस्कार के भाव से देखा, जैसे कह रहा हो—क्या तुम समझते हो कि मैं ही मनुष्य हूँ, यह सब पशु हैं ? फिर बोला—तुमसे क्या मतलब है जी, क्यों बीच में कूद पड़ते हो ? मैं तो बाबूजी से बात कर रहा हूँ। तुम कौन होते हो बीच में बोलनेवाले ? मैं तुम्हारी तरह नहीं हूँ कि बोतल पटककर वाह-वाह कराऊँ। कल फिर मुँह में कालिख लगाऊँ, या घर पर मँगवाकर पिऊँ? यहाँ जब छोड़ेंगे, तो सच्चे दिल से छोड़ेंगे। फिर कोई लाख रुपये भी दे, तो आँख उठाकर न देखें।
जयराम—मुझे आप लोगों से ऐसी ही आशा है।
चौधरी ने ख़ानसामा की ओर कटाक्ष करके कहा—क्या समझते हो, मैं कल फिर पीने आऊँगा?
खानसामा ने उद्दण्डता से कहा—हाँ-हाँ, कहता हूँ, तुम आओगे और बदकर आओगे! कहो पक्के कागज़ पर लिख दूँ!
चौधरी—अच्छा भाईं, तुम बड़े धर्मात्मा हो, मैं पापी सही। तुम छोड़ोगे, तो जिन्दगी भर के लिए छोड़ोगे, मैं आज छोड़कर कल फिर पीने लगूँगा, यही सही। मेरी एक बात गाँठ बाँध लो, तुम उस बखत छोड़ोगे, जब जिन्दगी तुम्हारा साथ छोड़ देगी। इसके पहले तुम नहीं छोड़ सकते।
खानसामा—तुम मेरे दिल का हाल क्या जानते हो?
चौधरी—जानता हूँ, तुम्हारे-जैसे सैकड़ों आदमी को भुगत चुका हूँ।
ख़ानसामा—तो तुमने ऐसे-वैसे बेशर्मों को देखा होगा। हयादार आदमियों को न देखा होगा।
यह कहते हुए उसने जाकर बोतल पटक दी और बोला—अब अगर तुम इस दुकान पर देखना, तो मुँह में कालिख लगा देना।
चारों तरफ़ तालियाँ बजने लगीं। मर्द ऐसे होते हैं!
ठीकेदार ने दूकान से नीचे उतरकर कहा—तुम लोग अपनी-अपनी दूकान पर क्यों नहीं जाते जी? मैं तो किसी की दुकान पर नहीं जाता?
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