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समर-यात्रा
 


चौधरी--जितनी बची हो, उसके पैसे हमसे ले लो। घर जाकर बच्चों को मिठाई खिला देना।

दाढ़ीवाले ने जाकर बोतल पटक दी और बोला-लो, तुम भी क्या कहोगे ? अब तो हुए खुश!

चौधरी-अब तो न पियोगे कभी ?

दाढ़ीवाले ने कहा-अगर तुम न पियोगे, तो मैं भी न पिऊँगा। जिस दिन तुमने पी, उसी दिन मैंने फिर शुरू कर दी।

चौधरी की तत्परता ने दुराग्रह की जड़ें हिला दीं। बाहर अभी पाँच-छः आदमी और थे। वे सचेत निर्लजता से बैठे हुए अभी तक पीते जाते थे। जयराम ने उनके सामने जाकर कहा---भाइयो, आपके पांँच भाइयों ने अभी आपके सामने अपनी-अपनी बोतल पटक दी। क्या आप उन लोगों को बाज़ी जीत ले जाने देंगे ?

एक ठिगने, काले आदमी ने, जो किसी अँगरेज़ का खानसामा मालूम होता था, लाल-लाल आँखे निकालकर कहा-हम पीते हैं, तो तुमसे मतलब? तुमसे भीख मांँगने तो नहीं जाते ?

जयराम ने समझ लिया, अब बाज़ी, मार ली। गुमराह आदमी जब विवाद करने पर उतर पाये, तो समझ लो, वह रास्ते पर आ जायगा। चुप्पा ऐब वह चिकना घड़ा है, जिसपर किसी बात का असर नहीं होता।

जयराम ने कहा-अगर मैं अपने घर में आग लगाऊँ, तो उसे देखकर क्या आप मेरा हाथ न पकड़ लेंगे? मुझे तो इसमें रत्ती भर संदेह नहीं है कि आप मेरा हाथ ही पकड़ लेंगे ; बल्कि मुझे यहां से ज़बरदस्ती खींचते जायेंगे।

चौधरी ने खानसामा की तरफ़ मुग्ध आँखों से देखा, मानो कह रहा है-इसका तुम्हारे पास क्या जवाब है ? और बोला-जमादार, अब इसी बात पर बोतल पटक दो।

ख़ानसामा ने जैसे काट खाने के लिए दाँत तेज़ कर लिये और बोला-बोतल क्यों पटक दूँ, पैसे नहीं दिये हैं ?

चौधरी परास्त हो गया। जयराम से बोला- इन्हें छोड़िए बाबूजी,