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शराब की दूकान
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जो राजा है, वह राजा है ; जो परजा है, वह परजा है। भला परजा कहीं राजा हो सकता है

इतने में जयराम ने आकर कहा-राम राम ! भाइयो राम राम !!

पांच-छः खद्दरधारी मनुष्यों को देखकर सभी लोग उनकी ओर शंका और कुतूहल से ताकने लगे। दुकानदार ने चुपके से अपने एक नौकर के कान में कुछ कहा और नौकर दूकान से उतरकर चला गया।

जयराम ने झंडे को ज़मीन पर खड़ा करके कहा-भाइयो, महात्मा गांधी का हुक्म है कि श्राप लोग ताडी-शराब न पिये। जो रूपये आप यहाँ' उड़ा देते हैं, बह अगर अपने बाल-बच्चों को खिलाने-पिलाने में खर्च करें, तो कितनी अच्छी बात हो ! जरा देर के नशे के लिए आप अपने बाल-बच्चों को भखों मारते हैं, गंदे घरों में रहते हैं, महाजन की गालियां खाते हैं। सोचिए, इस रुपये से आप अपने प्यारे बच्चों को कितने आराम से रख सकते हैं!

एक बूढ़े शराबी ने अपने साथी से कहा-भैया, है तो बुरी चीज़, घर तबाह करके छोड़ देती है। मुदा इतनी उमिर पीते कट गई, तो अब मरते दम क्या छोड़ें। उसके साथी ने समर्थन किया-पक्की बात कहते हो चौधरी ! जब इतनी उमिर पीते कट गई, तो अब मरते दम क्या छोड़ें ?

जयराम ने कहा-वाह! चौधरी ! यही तो उमिर है छोड़ने की । जवानी तो दीवानी होती है, उस वक्त सब कुछ मुश्राफ़ है।

चौधरी ने तो कोई जवाब न दिया, लेकिन उसके साथी ने जो काला मोटा, बड़ी-बड़ी मूंछोवाला आदमी था, सरल आपत्ति के भाव से कहा- अगर पीना बुरा है, तो अँगरेज़ क्यों पीते हैं ?

जयराम वकील था, उससे बहस करना भिड़ के छत्ते को छेड़ना था। बोला-यह तुमने बहुत अच्छा सवाल पूछा भाई। अँगरेजों के बाप-दादा अभी डेढ़-दो सौ साल पहले लुटेरे थे। हमारे-तुम्हारे बाप दादा ऋषिमुनि थे। लुटेरों की सन्तान पिये, तो पीने दो। उनके पास न कोई धर्म है, न नीति ; लेकिन ऋषियों की सन्तान उनकी नकल क्यों करे ? हम और तुम उन महात्माओं की सन्तान हैं, जिन्होंने दुनिया को सिखाया, जिन्होंने दुनिया