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समर-यात्रा
 


वाक्य पूरा न करने दिया। बोलीं--तो फिर मुझे इस काम पर भेज दीजिए।

लोगों ने कुतूहल की आँखों से मिसेज़ सकसेना को देखा। यह सुकुमारी,जिसके कोमल अंगों में शायद हवा भी चुभती हो, गन्दी गलियों में, ताड़ी और शराब की दुर्गन्ध-भरी दूकानों के सामने जाने और नशे से पागल आदमियों की कलुषित आँखों और बाहों का सामना करने को कैसे तैयार हो गई !

एक महाशय ने अपने समीप के आदमी के कान में कहा---बला की निडर औरत है !

उन महाशय ने जले हुए शब्दों में उत्तर दिया---हम लोगों को काटों में घसीटना चाहती हैं और कुछ नहीं। यह बेचारी क्या पिकेटिंग करेंगी। दूकान के सामने खड़ा तक तो हुआ न जायगा।

प्रधान ने सिर झुकाकर कहा---मैं आपके साहस और उत्सर्ग की प्रशंसा करता हूँ, लेकिन मेरे विचार में अभी इस शहर की दशा ऐसी नहीं है कि देवियाँ पिकेटिंग कर सकें। आपको ख़बर नहीं नशेबाज लोग कितने मुंहफट होते हैं। विनय तो वह जानते ही नहीं !

मिसेज़ सकसेना ने व्यंग्य भाव से कहा---तो क्या आपका विचार है कि कोई ऐसा ज़माना भी आयगा,जब शराबी लोग विनय और शील के एतले बन जायेंगे ? यह दशा तो हमेशा ही रहेगी। आखिर महात्माजी ने कुछ समझकर ही तो औरतों को यह काम सौंपा है ? मैं नहीं कह सकती कि मुझे कहाँ तक सफलता होगी;पर इस कर्त्तव्य को टालने से काम न चलेगा।

प्रधान ने बशोपेश में पड़कर कहा---मैं तो आपको इस काम के लिए घसीटना उचित नहीं समझता, आगे आपको अख्तियार है।

मिसेज सकसेना ने जैसे विजय का आलिंगन करते हुए कहा---मैं आपके पास फ़रियाद लेकर न आऊँगी कि मुझे फ़ला आदमी ने मारा या गाली दी। इतना जानती हूँ कि अगर मैं सफल हो गई, तो ऐसी स्त्रियों की कमी न रहेगी, जो सोलहो पाने अपने हाथ में न ले लें।