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पत्नी से पति
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झोली में पैसा डालकर अंधा वहाँ से चल दिया और कुछ दूर जाकर गाने लगा।

'वतन की देखिए तक़दीर कब बदलती है।'

सभापति ने कहा––मित्रो, देखिए, यह वह पैसा है, जो एक गरीब अन्धा लड़का इस झोली में डाल गया है। मेरी आँखों में इस एक पैसे की कीमत किसी अमीर के एक हज़ार रुपये से कम नहीं। शायद यही इस गरीब की सारी विसात होगी। जब ऐसे गरीबों की सहानुभूति हमारे साथ है, तो मुझे सत्य के विजय में कोई सन्देह नहीं मालूम होता। हमारे यहाँ क्यों इतने फ़कीर दिखाई देते हैं? या तो इसलिए कि समाज में इन्हें कोई काम नहीं मिलता या दरिद्रता से पैदा हुई बीमारियों के कारण यह अब इस योग्य ही नहीं रह गये कि कुछ काम करें। या भिक्षावृत्ति ने इनमें कोई सामर्थ्य ही नहीं छोड़ी। स्वराज्य के सिवा इन गरीबों का अब-उद्धार कौन कर सकता है। देखिए वह गा रहा है––

'वतन की देखिए तक़दीर कब बदलती है।'

इस पीड़ित हृदय में कितना उत्सर्ग है! क्या अब भी कोई सन्देह कर सकता है कि हम किसकी आवाज हैं? (पैसा ऊपर उठाकर) आपमें कौन इस रत्न को खरीद सकता है?

गोदावरी के मन में जिज्ञासा हुई, क्या यह वही पैसा तो नहीं है, जो रात मैंने उसे दिया था? क्या उसने सचमुच रात को कुछ नहीं खाया?

उसने जाकर समीप से पैसे को देखा, जो मेज़ पर रख दिया गया था। उसका हृदय धक् से हो गया। यह वही घिसा हुआ पैसा था।

उस अन्धे की दशा, उसके त्याग का स्मरण करके गोदावरी अनुरक्त हो उठी। काँपते हुए स्वर में बोली––मुझे आप यह पैसा दे दीजिए, मैं पांच रुपए दूँगी।

सभापति ने कहा––एक बहन इस पैसे के दाम पाँच रुपए दे रही हैं।

दूसरी आवाज़ आई, दस रुपए।

तीसरी आवाज़ आई, बीस रुपए।

गोदावरी ने इस अन्तिम व्यक्ति की ओर देखा। उसके मुख पर आत्मा-