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पत्नी से पति
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सकती है; पर उस भले आदमी पर उसके सारे हाव-भाव, मृदु-सुस्कान और वाणी-विलास का कोई असर न हुआ। ख़ुद तो स्वदेशी वस्त्रों के व्यवहार करने पर क्या राज़ी होते, गोदावरी के लिए एक खद्दर की साड़ी लाने पर भी सहमत न हुए। यहाँ तक कि गोदावरी ने उनसे कभी कोई चीज़ माँगने की क़सम खा ली।

क्रोध और ग्लानि ने उसकी सद्‌भावनाओं को इस तरह विकृत कर दिया, जैसे कोई मैली वस्तु निर्मल जल को दूषित कर देती है। उसने सोचा, जब यह मेरी इतनी-सी बात भी नहीं मान सकते, तब फिर मैं क्यों इनके इशारों पर चलूँ, क्यों इनकी इच्छाओं की लौंडी बनी रहूँ? मैंने इनके हाथ कुछ अपनी आत्मा नहीं बेची है। अगर आज ये चोरी या ग़बन करें, तो क्या मैं सजा पाऊँगी? उसकी सज़ा ये खुद झेलेंगे। उसका अपराध इनके ऊपर होगा। इन्हें अपने कर्म और वचन का अख़्तियार है, मुझे अपने कर्म और वचन का अख़्तियार। यह अपनी सरकार की गुलामी करें, अँगरेज़ों की चौखट पर नाक रगड़ें, मुझे क्या गरज़ है कि उसमें इनका सहयोग करूँ। जिसमें आत्माभिमान नहीं, जिसने अपने को स्वार्थ के हाथों बेच दिया, उसके प्रति अगर मेरे मन में भक्ति न हो तो मेरा दोष नहीं। यह नौकर हैं या गुलाम? नौकरी और गुलामी में अन्तर है, नौकर कुछ नियमों के अधीन अपना निर्दिष्ट काम करता है, वह नियम स्वामी और सेवक दोनों ही पर लागू होते हैं; स्वामी अगर अपमान करे, अपशब्द कहे तो नौकर उसको सहन करने के लिए मज़बूर नहीं। गुलाम के लिए कोई शर्त नहीं, उसकी दैहिक गुलामी पीछे होती है, मानसिक गुलामी पहले ही हो जाती है। सरकार ने इनसे कब कहा है कि देशी चीज़ें न ख़रीदो। सरकारी टिकटों पर तक यह शब्द लिखे होते हैं 'स्वदेशी चीज़ें ख़रीदो।' इससे विदित है कि सरकार देशी चीज़ों का निषेध नहीं करती, फिर भी यह महाशय सुर्खरू बनने की फ़िक्र में सरकार से भी दो अंगुल आगे बढ़ना चाहते हैं।

मिस्टर सेठ ने कुछ झेंपते हुए कहा––कल फ्लावर शो देखने चलोगी?

गोदावरी ने विरक्त मन से कहा––नहीं।

'बहुत अच्छा तमाशा है।'