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समर-यात्रा
 

हम और आप दोनों ही एक पैरों के तले दबे हुए हैं । यह हमारी बदनसीबी है, कि हम-आप दो विरोधी दलों में खड़े हैं।

यह कहते हुए नायक ने गांववालों को समझाया---भाइयो, मैं आपसे कह चुका हूँ, यह न्याय और धर्म की लड़ाई है और हमें न्याय और धर्म के हथियारों से ही लड़ना है। हमें अपने भाइयों से नहीं लड़ना है। हमें तो किसी से भी लड़ना नहीं है। दारोगा की जगह कोई अंगरेज होता, तो भी हम उसकी इतनी ही रक्षा करते । दारोगा ने कोदई चौधरी को गिरफ्तार किया है। मैं इसे चौधरी का सौभाग्य समझता हूँ। धन्य हैं वे लोग जो आज़ादी की लड़ाई में सज़ा पायें। यह बिगड़ने या घबड़ाने की बात नहीं है। आप लोग हट जायें और पुलिस को जाने दें।


दारोगा और सिपाहो कोदई को लेकर चले । लागों ने जयध्वनि की---'भारत माता की जय !'

कोदई ने जवाब दिया---राम-राम,भाइयो,राम-राम । डटे रहना मैदान में। घबड़ाने की कोई बात नहीं है । भगवान् सबका मालिक है।

दोनों लड़के आँखों में आँसू भरे आये और कातर स्वर में बोले---हमें क्या कहे जाते हो दादा!

कोदई ने उन्हे बढ़ावा देते हुए कहा---भगवान् का भरोसा मत छोड़ना और वह करना, जो मरदों को करना चाहिए। भय सारी बुराइयों को जड़ है । इसे मन से निकाल डालो, फिर तुम्हारा कोई कुछ नहीं कर सकता। सत्य की कभी हार नहीं होती।

आज पुलीस के सिपाहियों के बीच में कोदई को निर्भयता का जैसा अनुभव हो रहा था, वैसा पहले कभी न हुआ था। जेल और फांसी उसके लिए आज भय की वस्तु नहीं, गौरव की वस्तु हो गई थी। सत्य का प्रत्यक्ष रूप आज उसने पहली बार देखा । मानो वह कवच को भांति उसकी रक्षा कर रहा हो।

(५)

गाँववालों के लिए कोदई का पकड़ लिया जाना लज्जाजनक मालूम हो रहा था। उनकी आँखों के सामने उनके चौधरी इस तरह पकड़ लिये