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समर-यात्रा
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दारोगा---तुम रियाया के अमन में खलल डालते हो ?

नायक---अगर उन्हें उनकी हालत बताना उनके मन में खलल डालना है, तो बेशक हम उनके अमन में खलल डाल रहे हैं !

भागनेवालों के कदम एक बार फिर रुक गये। कोदई ने उनकी ओर निराश आँखों से देखकर कापते हुए स्वर में कहा---भाइयो, इस वखत कई गांवों के आदमी यहाँ जमा हैं । दारोगा ने हमारी जैसी बेआबरूई की है,क्या उसे सहकर तुम आराम की नींद सो सकते हो ? इसकी फरियाद कोन सुनेगा ? हाकिम लोग क्या हमारी फरियाद सुनेगें ? कभी नहीं । आज अगर हम लोग मार डाले जायँ, तो भी कुछ न होगा । यह है हमारी इज़्ज़त और आबरू ! थुड़ी है इस जिन्दगानी पर!

समूह स्थिर भाव से खड़ा हो गया, जैसे बहता हुआ पानी मेंड़ से रुक जाय । भय का धुआं, जो लोगों के हृदय पर छा गया था, एकाएक हट‌ गया। उनके चेहरे कठोर हो गये। दारोगा ने उनके तीवर देखे, तो तुरन्त घोड़े पर सवार हो गया और कोदई को गिरफ्तार करने का हुक्म दिया। दो सिपाहियों ने बढ़कर कोदई की बांह पकड़ ली। कोदई ने कहा---घबड़ाते क्यों हो, मैं कहीं भागूंगा नहीं। चलो, कहाँ चलते हो !

ज्योंही कोदई दोनों सिपाहियों के साथ चला, उसके दोनों जवान बेटे कई आदमियों के साथ सिपाहियों की ओर लपके कि कोदई को उनके हाथों से छीन लें । सभी आदमी विकट आवेश में आकर पुलिसवालों के चारों ओर जमा हो गये।

दारोगा ने कहा---तुम लोग हट जाओ, वरना मैं फ़ायर कर दूंगा। समूह ने इस धमकी का जवाब 'भारत माता की जय !' से दिया और एक-एक दो-दो कदम और आगे खिसक आये।

दारोगा ने देखा, अब जान बचती नहीं नज़र आती। नम्रता से बोला---नायक साहब, यह लोग फ़साद पर आमादा हैं। इसका नतीजा अच्छा न होगा।

नायक ने कहा---नहीं, जब तक हममें से एक आदमी भी यहाँ रहेगा,आपके ऊपर कोई हाथ न उठा सकेगा। आपसे हमारी कोई दुश्मनी नहीं है।