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समर-यात्रा
 

पानी में! जानते हो,ह लोग जो यहाँ आये हैं,कौन हैं? यह वह लोग हैं,जो हम गरीबों के लिए अपनी जान तक होमने को तैयार हैं। तुम उन्हें बदमाश कहते हो। तुम,जो घूम के रुपये खाते हो,जुवा खेलाते हो, चोरियां करवाते हो,डाके डलवाते हो,भले श्रादमियों को फंसाकर मुट्रिया गर्म करते हो और अपने देवताओं की जूतियों पर नाक रगड़ते हो, तुम इन्हें बदमाश कहते हो!

नोहरी की तीक्ष्ण बातें सुनकर बहुत से लोग जो इधर-उधर दबक गये थे,फिर जमा हो गये। दारोगा ने देखा,भीड़ बढ़ती जाती है,तो अपना हंटर लेकर उन पर पिल पड़े। लोग फिर तितर-बितर हो गये। एक हंटर नोहरी पर भी पड़ा। उसे ऐसा मालूम हुआ कि कोई चिंगारी सारी पीठ पर दौड़ गई। उसकी आँखों तले अंधेरा छा गया;पर अपनी बची हुई शक्ति को एकत्र करके ऊँचे स्वर में बोली-लड़को,क्यों भागते हो ? क्या यहाँ नेवता खाने पाये थे,या कोई नाच-तमाशा हो रहा था। तुम्हारे इसी लेडीपन ने इन सबों को शेर बना रखा है। कब तक यह मार-धाड़,गाली.गुप्ता सहते रहोगे ?

एक सिपाही ने बुढ़िया की गरदन पकड़कर जोर से धक्का दिया। बुढ़िया दो-तीन कदम पर औंधे मुह गिरा चाहती थी कि कोदई ने लपककर उसे संभाल लिया और बोला-क्या एक दुखिया पर गुस्सा दिखाते हो यारो!क्या गुलामी ने तुम्हें नामद भी बना दिया है ?औरतों पर,बूढ़ों पर,निहत्थों पर वार करते हो, यह मरदों का काम नहीं है।

नोहरी ने ज़मीन पर पड़े-पड़े कहा-मर्द होते,तो गुलाम ही क्यों होते!भगवान्! आदमी इतना निर्दयी भी हो सकता है ? भला अँगरज इस तरह बेदरदी करे,तो एक बात है। उसका राज्य है। तुम तो उसके चाकर हो, तुम्हें राज तो न मिलेगा; मगर रांड़ माड़ में ही खुश! इन्हें कोई तलब देता जाय, दूसरों की गरदन भी काटने में इन्हें संकोच नहीं!

अब दारोगा ने नायक को डाँटना शुरू किया-तुम किसके हुक्म से इस गांव में आये ?

नायक ने शान्त भाव से कहा-खुदा के हुक्म से।