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समर-यात्रा
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हो गया। लोगों ने सहमी हुई आँखों और धड़कते हुए दिलों से उनकी ओर देखा और जैसे छिपने के लिए बिल खोजने लगे।

दारोगाजी ने हुक्म दिया-मारकर भगा दो इन बदमाशों को!

कांसटेबलों ने अपने डण्डे सँभाले ; मगर इसके पहले कि वे किसी पर हाथ चलायें,सभी लोग हुर्र हो गये! कोई इधर से भागा,कोई उधर से ।भगदड़ मच गई। दस मिनट में वहाँ गाँव का एक आदमो भी न रहा। हाँ,नायक अपने स्थान पर अब भी खड़ा था और जत्था उसके पीछेबैठा हुआ था;केवल कोदई चौधरी नायक के समीप बैठे हुए स्थिर आँखों से भूमि की ओर ताक रहे थे।

दारोगा ने कोदई की ओर कठोर आँखों से देखकर कहा-क्यों रे कोदइया, तूने इन बदमाशों को क्यों ठहराया यहाँ ?

कोदई ने लाल-जाल खिों से दारोगा की ओर देखा और ज़हर की तरह गुस्से को पी गये। आज अगर उनके सिर गृहस्थी का बखेड़ा न होता,लेना-देना न होता तो वह भी इसका मुँह-तोड़ जवाब देते। जिस गृहस्थी पर उन्होंने अपने जीवन के ५० साल होम कर दिये थे,वह इस समय एक विषले सर्प की भांती उनकी आत्मा में लिपटी हुई थी।

कोदई ने अभी कोई जवाब न दिया था कि नोहरी पीछे से आकर बोली-क्या लाल पगड़ी बांधकर तुम्हारी जीभ भी ऐंठ गई है ? कोदई क्या तुम्हारे गुलाम हैं कि कोदईया-कोदहया कर रहे हो। हमारा ही पैसा खाते हो और हमी को आँखें दिखाते हो ? तुम्हें लाज नहीं आती ?

नोहरी इस वक्त दोपहरी की धूप को तरह कांप रही थी। दारोगा एक क्षण के लिए सन्नाटे में आ गया। फिर कुछ सोचकर और औरत के मुह लगना रनी शान के खिलाफ समझकर कोदई से बोला-यह कौन शतान की खाला है, कोदई ? खुदा का खौफ न होता,तो इसकी ज़बान तालू से खींच लेता।

बुढ़िया लाठी टेककर दारोगा की ओर घूरती हुई बोली-क्यों खुदा की दुहाई देकर खुदा को बदनाम करते हो! तुम्हारे खुदा तो तुम्हारे अफसर हैं,जिनकी तुम जूतियाँ चाटते हो। तुम्हें तो चाहिए था कि डूब मरते चिल्लू भर