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समर-यात्रा
 

के लिए उन्होंने सब कुछ लगा दिया है। ऐसे वीरों का सत्कार करने के लिए, जो आदमी जेल में डाल दिया जाय, उसकी स्त्री के दर्शनों से भी आत्मा पवित्र होती है। मैं तुझ पर एहसान नहीं कर रही हूँ, तू मुझ पर एहसान कर रही है।'

मैं इस दया-सागर में डुबकियां खाने लगी। बोलती क्या।

शाम को जब ज्ञान बाबू लौटे, तो उनके मुख पर विजय का आनंद था।

देवी ने पूछा---हार कि जीत ?

ज्ञान बाबू ने अकड़कर कहा---जीत ! मैंने इस्तीफा दे दिया, तो चक्कर में आ गया। उसी वक्त हाकिम जिला के पास गया। वहां न जाने मोटर पर बैठकर दोनों में क्या बातें हुई। लौटकर मुझसे बोला---आप पोलिटिकट जलसों में तो नहीं जाते ?

मैंने कहा---कभी भूलकर भी नहीं।

'कांग्रेस के मेम्बर तो नहीं हैं ?'

मैंने कहा---मेम्बर क्या, मेम्बर का दोस्त भी नहीं।

'कांग्रेस-फंड में चन्दा तो नहीं देते !'

मैंने कहा---कानी कौड़ी भी कभी नहीं देता।

'तो हमें आपसे कुछ नहीं कहना है। मैं आपका इस्तीफा वापस करता हूँ।'

देवीजी ने मुझे गले लगा लिया।