भिमान या सिद्धान्त पर चोट लगती हो.। मैं ईश्वर से तुम्हारे लिए प्रार्थना करती रहूँगी।
गाड़ी ने सीटी दी। विशंभर अन्दर जा बैठा। गाड़ी चली गई, रूपमणि मानो विश्व की सम्पत्ति अञ्चल में लिये खड़ी रही।
( ३ )
रूपमणि के पास विशंभर का एक पुराना रद्दो-सा फोटो आल्मारी के एक कोने में पड़ा हुआ था । आज स्टेशन से आकर उसने उसे निकाला और उसे एक मखमली फ्रम में लगाकर मेज पर रख दिया। आनन्द का फोटो वहाँ से हटा दिया गया।
विशंभर ने छुट्टियों में उसे दो-चार पत्र लिखे थे। रूपमणि ने उन्हें पढ़कर एक किनारे डाल दिये थे। आज उसने उन पत्रों को निकाला और उन्हें दोबारा पढ़ा । उन पत्रों में आज कितना रस था! वह बड़ी हिफ़ाज़त से राइटिंग-बाक्स में बन्द कर दिये गये।
दूसरे दिन समाचार-पत्र आया तो रूपमणि उस पर टूट पड़ी। विशंभर का नाम देखकर वह गर्व से फूल उठी।
दिन में एक बार स्वराज्य-भवन जाना उसका नियम हो गया। जलसों में भी बराबर शरीक होती, विलास की चीजें एक-एक करके सब फेंक दी गई। रेशमी साड़ियों की जगह गाढ़े की साड़ियां आई। चरखा भी आया। वह घण्टों बैठी सूत काता करती। उसका सूत दिन-दिन बारीक होता जाता था । इसी सूत से वह विशंभर के कुरते बनवायेगी ।
इन दिनों परीक्षा की तैयारियां थीं। आनन्द को सिर उठाने की फुरसत न मिलती। दो-एक बार वह रूपमणि के पास आया ; पर ज़्यादा देर बैठा नहीं। शायद रूपमणि की शिथिलता ने उसे ज़्यादा बैठने ही न दिया।
एक महीना बीत गया।
एक दिन शाम को आनन्द पाया। रूपमणि स्वराज्य-भवन जाने को तैयार थी। आनन्द ने भवें सिकोड़कर कहा-तुमसे तो अब बाते करना भी मुश्किल है।