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सप्तसरोज
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नहीं दिखाई देते। उनसे मिलिये और उन्हे, मिलाइये तब उनके जौहर खुलते हैं। उनपर विश्वास कीजिये तब वह आपपर विश्वास करेगे। आप कहेगे इस विषयमे अग्रसर होना उनका काम है और आपका यह कहना उचित भी हैं, लेकिन शताब्दियोंसे वह इतने पीसे गये हैं इतनी ठोकरे खाई हैं कि उनमे स्वाधीन गुणोंका लोप-सा हो गया है। जमींदारको वह एक हौआ समझते हैं जिसका काम उन्हें निगल जाना है, वह उसका मुकाबिला नहीं कर सकते, इसलिये छल और कपटसे काम लेते हैं, जो निर्बलों का एकमात्र आधार है। पर आप एक बार उनके विश्वासपात्र बन जाइये, फिर आप कभी उनकी शिकायत न करेंगे।

बाबूलाल यह बाते कर ही रहे थे कि कई चमारों ने घासके बड़े बड़े गट्ठे लाकर डाल दिये और चुपचाप चले गये। शर्माजी को आश्चर्य हुआ। इसी घासके लिये इनके बगलेपर रोज हाय हाय होती है और यहां किसीको खबर भी नहीं हुई। बोले, आखिर अपना विश्वास जमाने का कोई उपाय भी है?

बाबूलालने उत्तर दिया, आप स्वयं बुद्धिमान है। सामने मेरा मुँह खोलना धृष्टता है। मैं इसका एक ही उपाय जानता हूँ। उन्हे किसी कष्टमें देखकर उनकी मदद कीजिये। मैंने उन्हींके लिये वैद्यक सीसा और एक छोटा मोटा औषधालय अपने साथ रखता हूँ। रुपया मांगते हैं तो रुपया, अनाज मांगते हैं तो अनाज देता हूँ, पर सूद नहीं लेता। इससे मुझे कोई हानि, नहीं होती, दूसरे रूपमें सूद अधिक मिल जाता है। गांव में दो अन्धी स्त्रियां और दो अनाथ लड़किया हैं, उनके निर्वाहका