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उपदेश
 

बाबूलाल—यह मेरा हिस्सा है और वह आपका हिस्सा है। मैं अपने हिस्सेकी देख रेख स्वयं करता हूं पर आपका हिस्सा नौकरोंकी कृपाके अधीन है।

शर्माजी—अच्छा, यह बात है। आखिर आप क्या करते हैं?

बाबूलाल—और कुछ नहीं, केवल ताकीद करता रहता हूँ। जहाँ अधिक मैलापन देखता हूँ स्वयं साफ करता हूँ। मैंने सफाई का एक इनाम नियत कर दिया है, जो प्रति मास सबसे साफ घर के मालिकको मिलता है। आइये बैठिये।

शर्माजीके लिये एक कुर्सी रख दी गई। वे उसपर बैठ गये और बोले—क्या आप आजही आये हैं?

बाबूलाल—जी हां, कल तातील है। आप जानते हैं कि तातीलके दिनोंमे मैं यहीं रहता हूँ।

शर्माजी—शहरका क्या रङ्ग-ढङ्ग है?

बाबूलाल—वही हाल, बल्कि और भी खराब। 'सोसल सर्विस लीग' वाले भी गायब हो गये। गरीबों के घरोंमें मुर्दे पड़े हुए हैं। बाजार बन्द हो गये। खानेको अनाज नहीं मिलता।

शर्माजी—भला बताओ तो ऐसी आगमें में वहां कैसे रहता? बस, लोगोंने मेरी ही जान सस्ती समझ रखी है। जिस दिन में यहां आ रहा था आपके वकील साहब मिल गये बेतरह गरम हो पड़े। मुझे देश भक्तिके उपदेश देने लगे। जिन्हें कभी भूलकर भी देशका ध्यान नहीं आता वे भी मुझे उपदेश देना अपना कर्तव्य समझते हैं। कुछ मुझे ही देश भाक्तिका दावा है? जिसे देखो, वही तो देशसेवक बना फिरता है।