रोक दी गयीं। हम ब्राह्मणोपर तो आपकी कृपादृष्टि रहनी चाहिये।
वंशीधर रुखाईसे बोले, सरकारी हुक्म।
प० अलोपीदीनने हंसकर कहा, हम सरकारी हुक्म को नहीं जानते और न सरकार को। हमारे सरकार तो आप ही हैं। हमारा और आपका तो घर का मामला है, हम कभी आपसे बाहर हो सकते हैं? आपने व्यर्थका कष्ट उठाया। यह हो नहीं सकता कि इधरसे जाय और इस घाट के देवता को भेंट न चढावे। मैं तो आपकी सेवा में स्वयं ही आ रहा था। वंशीधर पर इस ऐश्वर्य की माहिनी वंशीका कुछ प्रभाव न पड़ा। ईमानदारी की नई उमंग थी। कड़ककर बोले, हम उन नमक हरामों में नहीं हैं जो कौडियों-पर अपना ईमान बेचते फिरते है। आप इस समय हिरासत में है। सबेरे आपका कायदेके अनुमार चालान होगा। बस, मुझे अधिक बातों की फुर्सत नही है। जमादार बदलू सिंह तुम इन्हे हिरासतमें ले चलो, मैं हुक्म देता है।
पण्डित जी अलोपीदीन स्तम्भित हो गये। गाडीवानों में हलचल गया। पंडितजी के जीवन में कदाचित यह पहला ही अवसर था कि पंडितजी को ऐसी कठोर बातें सुननी पडी। बदलू सिंह आगे बढ़ा, किन्तु रोब के मारे यह साहस न हुआ कि उनका हाथ पकड़ सके। पंडितजी ने धर्म को धन का ऐसा निरादर करते कभी देखा था। विचार किया कि यह अभी उदण्ड लड़का है। मोह के जाल में नहीं पड़ा। अल्दड़ है, झिझकता है। बहुत दीनभाव से बोले, बाबू साहब ऐसा न कीजिये, हम मिट जायगे।