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पंच परमेश्वर
 

साहस न हो। अन्त में जुम्मन ने फैसला सुनाया, अलगू चौधरी और समझू साहु। पञ्चोंने तुम्हारे मुआमलेपर अच्छी तरह विचार किया। समझू को उचित है कि बैलका पूरा दाम दे। जिस वक्त उन्होंने बैल लिया, उसे कोई बीमारी न थी। अगर उसी समय दाम दे दिया जाता तो आज समझू उसे फेर लेनेका आग्रह न करते। बैलकी मृत्यु केवल इस कारण हुई कि उससे बड़ा कठिन परिश्रम कराया गया और उसके दाने-चारे का कोई अच्छा प्रबन्ध न किया गया।

रामधन मिश्र बोले, समझूने बैल को जान बूझकर मारा है। अतएव उन से दण्ड लेना चाहिये।

जुम्मन बोले, यह दूसरा सवाल है। हमको इससे कोई मतलब नहीं।

झगडू साहुने कहा, समझूके साथ कुछ रियायत होनी चाहिये।

जुम्मन बोले, यह अलगू चौधरीकी इच्छा पर है। वे रियायत करे तो उनकी भलमनसी है।

अलगू चौधरी फूले न समाये। उठ खडे हुए और जोरसे बोले, पंच परमेश्वरकी जय।

चारों ओर से प्रतिध्वनि हुई—पंच परमेश्वरकी जय।

प्रत्येक मनुष्य जुम्मनकी नीति को सराहता था—इसे कहते है न्याय। यह मनुष्य का काम नहीं, पंचमें परमेश्वर वास करते हैैं। यह उन्हींकी महिमा है। पंचके सामने खोटेको फोन खरा कर सकता है?