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पंच परमेश्वर
 


नेक बद सब देखता है। अलगू को सन्देह हुआ कि जुम्मन ने बैल को विष दिला दिया है। चौधराइन ने भी जुम्मन पर ही इस दुर्घटना का दोषारोपण किया। उसने कहा, जुम्मन ने कुछ कर दिया है। चौधराइन और करीमन मे इम विषय पर एक दिन खुब ही वाद विवाद हुआ। दोनों देवियों ने शब्द बाहुल्य की नदी बहा दी। व्यङ्ग, वक्रोक्ति, अन्योक्ति और उपमा आदि अलङ्कारो में जुम्मनने किसी तरह शान्ति स्थापित की। उसने अपनी पत्नी को डाँट डपटकर समझा दिया। वे उसे उस रणभूमि से हटा भी ले गये। उधर अलगू चौधरीने समझाने बुझाने का काम अपने तर्कपूर्ण सोटे से लिया ।

अब अकेला बैल किस काम का? उसका जोड़ा बहुत ढुँढा गया, पर न मिला। निदान यह सलाह ठहरी कि इसे बेच डालना चाहिये। गाँव में एक समझू साहु थे, वे इक्का-गाड़ी हाकते थे। गांव से गुड, घी लादकर वे मण्डी ले जाते, मण्डी से तेल, नमक भर लाते और गांव में बेचते। इस बैल पर उनका मन लहराया। उन्होंने सोचा, यह बैल हाथ लगे तो दिन भर मे बेखट के तीन खेपे हो। आजकल तो एक ही खेप के लाले पड़े रहते हैं। बैल देखा, गाडी में दौडाया, बाल-भौरी की पहचान कराई, मोल-तोल किया और उसे लाकर द्वार पर बांध ही दिया। एक महीने में दाम चुकाने का वादा ठहरा। चौधरी को भी गरज थी ही, घाटे की परवाह न की।

समझू साहु ने नया बैल चल पाया तो लगे रगेदने। वे दिन में तीन तीन, चार चार खेपे करने लगे। न चारे की फिक्र थी,न पानी की। बस, खेपों से काम था। मंडी ले गये,वहा कुछ सूखा भूसा सामने