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सप्तसरोज
३८
 


शहबाज खां बोले, हां, नेक और पाक-साफ रहना जरूर अच्छी चीज है, मगर ऐसी नेकी ही से क्या जो दूसरो की जान ही ले ले।

बूढे हरिदास की बातों की जिन लोगों ने पुष्टि की थी वे, सब गोपालदास की हा-में-हा मिलाने लगे। निर्बल आत्माओंं में सच्चाई का प्रकाश जुगनू की चमक है।

सरदार साहब को एक पुत्री थी। उसका विवाह मेरठ के एक वकील के लड़के से ठहरा था। लड़का होनहार था। जाति कुल ऊचाँ था। सरदार साहब ने कई महीने की दौड-धूप में इस विवाह को तै किया था और सब बाते हो चुकी थीं, केवल दहेज का निर्णय न हुआ था। आज वकील साहब का एक पत्र आया। उसने इस बात का भी निश्चय कर दिया, मगर विश्वास, आशा और वचन के बिलकुल प्रतिकूल। पहले वकील साहब ने एक ज़िले के इञ्जिनियर के साथ किसी प्रकारका ठहराव व्यर्थ समझा। बङी सस्ती उदारता प्रकट की। इस लज्जित और घृणित व्यवहार पर खुब आँसू बहाये। मगर जब ज्यादा पूछ-ताछ करने पर सरदार साहब के धन-वैभव का भेद खुल गया तब दहेज का ठहरान आवश्यक हो गया। सरदार साहेब ने आशकित हाथो से पत्र खोला पाच हजार रुपये में कम पर विवाह नहीं हो सकता। वकील साहेब को बहुत खेद और लग्जा थी कि वे इस विषयमें स्पष्ट होने पर मजबूर किये गये। मगर वे अपने खानदान के कई बूढ़े, खुर्राद विचार हीन, स्वार्थान्ध महात्माओं के हाथों बहुत तंग थे। उनका