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सप्तसरोज
३४
 


सम्बन्ध थे वे उनके सद्भावों के ग्राहक न थे, क्योंकि, उन्हें हानि होती थी। यहाँ तक कि उन्हें अपनी सहधर्मिणी से भी कभी-कभी अप्रिय बातें सुननी पड़ती थीं।

एक दिन वे दफ्तर से आये तो उनकी पत्नी ने स्नेहपूर्ण ढंग से कहा, तुम्हारी यह सज्जनता किस काम की, जब सारा संसार तुम को बुरा कह रहा है।

सरदार साहब ने दृढ़ता से जवाब दिया, संसार जो चाहे कहे परमात्मा तो देखता है।

रामाने यह जबाव पहले ही सोच लिया था। वह बोली, मैं तुमसे विवाद तो करती नहीं, मगर जरा अपने दिलमें विचार करके देखो कि तुम्हारी इस सच्चाई का दूसरों पर क्या असर पड़ता है? तुम तो अच्छा वेतन पाते हो। तुम अगर हाथ न बढ़ाओ तो तुम्हारा निर्वाह हो सकता है। रूखी रोटियां मिल ही जायंगी। मगर ये दस-दस, पांच पांच रुपये के चपरासी, मुहर्रिर, दफ्तरी बेचारे कैसे गुजर करें। उनके भी बाल-बच्चे हैं। उनके भी कुटुम्ब परिवार हैं। शादी-गमी, तिथि-त्यौहार यह सब उनके साथ लगे हुए हैं। भलमनसीका भेष बनाये बिना काम नहीं चलता। बताओ उनका गुजर कैसे हो? अभी रामदीन चपरासी की घरवाली आयी थी, रोते-रोते आंचल भीगता था। लड़की हो गयी है। अब उसका ब्याह करना पड़ेगा। ब्राह्मण की जाति हजारों का खर्च। बताओ उसके आँसू किसके सिर पड़ेंगे?

ये सब बाते सच थीं। इससे सरदार साहब को इनकार नहीं हो सकता था। उन्होंने स्वयं इस विषय में बहुत कुछ