सज्जनता का दंड
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साधारण मनुष्यकी तरह शाहजहांपुरके डिस्ट्रिक्ट इंजीनियर सरदार शिवसिंह में भी भलाइयां और बुराइयां दोनों ही वर्तमान थीं। भलाई यह थी कि उनके यहां न्याय और दया में कोई अन्तर न था। बुराई यह थी कि वे सर्वथा निर्लोभ और निःस्वार्थ थे। भलाईने मातहतोंको निडर और आलसी बना दिया था, बुराई के कारण उस विभागके सभी अधिकारी उनकी जानके दुश्मन बन गये थे।
प्रातःकाल का समय था। वे किसी पुलकी निगरानी के लिए तैयार खड़े थे। मगर साईस अभीतक मीठी नींद ले रहा था। रात को उसे अच्छी तरह सहेज दिया गया था कि पौ फटने पहले गाड़ी तैयार कर लेना। लेकिन सुबह भी हुई, सूर्य भगवान दर्शन भी दिये, शीतल किरणों में गरमी भी आई, पर साईस की नींद अभीतक नहीं टूटी।
सरदार साहब खडे़-खडे़ थककर एक कुर्सीपर बैठ गये। साईस तो किसी तरह जागा, परन्तु अर्दलीके चपरासियों का पता नहीं। जो महाशय डाक लेने गये वे एक ठाकुरद्वार में खड़े चरणामृतकी प्रतीक्षा कर रहे थे। जो ठेकेदार को बुलाने गये थे वे बाबू रामदासकी सेवा मे बैठे गांजेका दम लगा रहे थे।