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बडे़ घर की बेटी
 


ईश्वरके दरबार में उत्तरदाता हूँ उसके साथ ऐसा घोर अन्याय और पशुवत व्यवहार मुझे असहाय है। आप सच मानिये, मेरे लिये यही कुछ कम नहीं है कि लालबिहारी को कुछ दड नहीं देता।

अब बेनीमाधव सिंह भी गरमाये। ऐसी बाते और न सुन सके। बोले, लालबिहारी तुम्हारा भाई है, उमसे जब कभी भूल- हो उसके कान पकड़ो। लेकिन——

श्रीकण्ठ——लालबिहारीको मैं अपना भाई नहीं समझता।

बेनीमाधव सिंह——स्त्रीके पीछे?

श्रीकण्ठ——जी नहीं, उसकी क्रूरता और अविवेक के कारण।

दोनों कुछ देर चुप रहे। ठाकुर साहब लड़के का क्रोध शांत करना चाहते थे, लेकिन यह नहीं स्वीकार करना चाहते थे कि लालबिहारीने कोई अनुचित काम किया है। इसी बीच में गांव के और कई सज्जन हुक्का चिलमके बहानेसे वहां आ बैठे। कई स्त्रियों ने जब यह सुना कि श्रीकण्ठ पत्नी के पीछे पिता से लड़ने पर तैयार हैं तो उन्हें बड़ा हर्ष हुआ। दोनों पक्षों की मधुर वाणियां सुननेके लिये उनकी आत्माए तलमलाने लगीं। गांवमें कुछ ऐसे कुटिल मनुष्य भी थे जो इस कुलकी नीतिपूर्ण गतिपर मन ही मन जलते थे। वह कहा करते थे, श्रीकण्ठ अपने आपसे दबता है इसलिये वह दब्बू है,उसने इतनी विद्या पढ़ी इसलिये वह किताबों का कीड़ा है, बेनीमाधव सिंह उसकी सलाहके बिना कोई काम नहीं करते यह उनकी मुर्खता है। इन महानुभावोंकी शुभ कामनाएँ आज पूरी होती दिखाई दी। कोई हुक्का पीने के बहाने और कोई लगान की रसीद दिखाने, आ आकर बैठ गये। बेनीमाधवसिंह पुराने आदमी