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परीक्षा
 

दिखाने की कोशिश करता था। मिस्टर "अ" नौ बजे दिनतक सोया करते थे, आजकल वे बगीचेमें टहलते हुए ऊषाका दर्शन करते थे। मि० "ब" को हुक्का पीनेकी लत थी, पर आजकल बहुत रात गये किवाड़ बन्द करके अन्धेरेमें सिगार पीते थे। मिस्टर "द"––"स" और "ज" से उनके घरोंपर नौकरोंकी नाक में दम था, लेकिन ये सज्जन आजकल "आप और जनाब" के बगैर नौकरोंसे बातचीत नहीं करते थे। महाशय "क" नास्तिक ये, हक्सलेके उपासक, मगर आजकल उनकी धर्मनिष्ठा देखकर मन्दिरके पूजारीको पदच्युत हो जाने की शंका लगी रहती थी। मिस्टर "ल" को किताबोंसे घृणा थी परन्तु आजकल वे बडे बडे ग्रन्थ देखनेमें पढ़नेमें डूबे रहते थे। जिससे बात कीजिये, वह नम्रता और सदाचारका देवता बना मालूम देता था। शर्माजी घड़ी रातसे ही वेद मन्त्र पढ़ने लगते थे और मौलवी साहबको तो नमाज और तलाबतके सिवा और कोई काम न था। लोग समझते थे कि एक महीने का झंझट है, किसी तरह काट लें, कहीं कार्य सिद्ध हो गया तो कौन पूछता है।

लेकिन मनुष्योंका वह बूढ़ा जौहरी आड़में बैठा हुआ देख रहा था कि इन बगुलोंमें हस कहां छिपा हुआ है?

एक दिन नये फैशनवालोंको सुझी कि आपसमें "हाकी" का खेल हो जाय। यह प्रस्ताव हाकीके मजे हुए खिलाडियोंने पेश किया। यह भी तो आखिर एक विद्या है। इसे क्यों छिपा रखें। सभव है, कुछ हाथोंकी सफाई ही काम कर जाय। चलिये