देखू ऐसा कौन बड़ा सिद्ध है जो कराहीका रस उड़ा देता है जरूर इसमें कोई न कोई बात है। इस गांवमें जितने कोल्हू जमीनमें गड़े पड़े हैं उनसे विदित होता है कि पहले यहां ऊख बहुत होती थी, किन्तु अब बेचारोंका मुँह भी मीठा नहीं होने पाता।
शिवदीन——अरे भैया! हमरे होसमें ई सब कोल्हू चलत रहे हैं। माघ-पूसमें रातभर गांवमें मेला लगा रहत रहा, पर जबसे ई नासिनी विद्या फैली है तबसे कोऊका ऊखके नेरे जायेका हियाव नाहीं परत है।
बाबूलाल——ईश्वर चाहेंगे तो फिर वैसी ही ऊख लगेगी। अबकी मैं इस मन्त्रको उलट दूंगा। भला यह तो बताओ अगर ऊख लग जाय और माल पड़े तो तुम्हारी पट्टीमें एक हजारका गुड़ हो जायगा?
हरखूने हँसकर कहा भैया, कैसी बात कहत हौ——हज़ार तो पांच बीघामें मिल सकत है। हमरे पट्टीमें २५ बीघासे कम ऊख नहीं बा। कुछो न परै तौ अढाई हजार कहूँ नहीं गये हैं।
इतने में एक युवा मनुष्य दौड़ता हुआ आया और बोला, भैया! ऊह तहकिकात देखे गइल रहलीं। दरोगाजी सबका डांटत मारत रहे। देवी मुखिया बोला, मुख़्तार साहब, हमय चाहे काट डारो मुदा हम एक कौड़ी न देबै। थाना कचहरी जहाँ कहौ चलैके तैयार हई। ई सुनके मुख़्तार लाल हुइ गयेन। चार
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