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सप्तसरोज
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चूमने चाहिये। मगर मेरे लिये वो वही आदमी सबसे अच्छा है जो शिकारमें मेरी मदद करे।

शर्माजीने इस बकवाद को बड़े ध्यानसे सुना। वह रसिक मनुष्य थे। इसकी मार्मिकतापर मुग्ध हो गये। सहृदयता और कठोरता के ऐसे विचित्र मिश्रण से उन्हें मनुष्यों के मनोभावों का एक कौतूहल जनक परिचय प्राप्त हुआ। ऐसी वक्तृता का उत्तर देने की कोशिश करना व्यर्थ था। बोले—क्या कोई तहकीकात है या महज गश्त?

दारोगाजी बोले,जी नहीं, महज गश्त। आजकल किसानों के फसल के दिन हैं। यही जमाना हमारी फसलका भी है। शेर को भी तो मांदमें बैठे-बैठे शिकार नहीं मिलता। जंगलमें घूमता है। हम भी शिकारकी तलाशमें हैं। किसी पर खुफिया फरोसी का इलजाम लगाया, किसी को चोरी का माल खरीदने के लिये पकडा, किस को हमलहराम का झगड़ा उठाकर फांसा। अगर हमारे नसीब से डाका पड़ गया तो हमारी पांचों अगुली घी में समझिये। डाकू तो नोच-खसोटकर भागते हैं। असली डाका हमारा पड़ता है। आस-पास के गांवों में झाड़ू फेर देते हैं। खुदा से शबोरोज दुआ किया करते है कि या परवरदिगार! कहीं से रिजक भेज। झूठे सच्चे डाकेकी खबर आये। अगर देखा कि तकदीरपर शाकिर रहने से काम नहीं चलता तो तदबीर से काम लेते हैं। जरासे इशारेकी जरूरत है, डाका पडते क्या देर लगती है। आप मेरी साफगोईपर हैरान होते होंगे। अगर मैं अपने सारे हथकडे बयान करूं तो आप यकीन न करेंगे और लुत्फ यह कि मेरा