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उपदेश
 

आपने तो पिछले साल कालेज छोडा है लेकिन आपने नो भी की तो पुलिस की।

बडे दारोगाजी यह ललकार सुनकर सभल बैठे और वो क्यों जनाब। क्या पुलिस ही सारे मुहकमों से गया-गुजरा है ऐसा कौन सा सीमा है जहां रिश्वतका बाजार गर्म नहीं। अग आप ऐसे एक सीमेका नाम बता दीजिये तो मैं ता उम्र आपका गुलामी करूं। मुलाजमत करके रिश्वत न लेना मुहाल है तालीमके सीगेको बेलौस कहा जाता है मगर मुझको इसका खून तजरवा हो चुका। अब मैं किसीके रास्तवाजीके दावेको तस्लीम नहीं कर मक्ता और दूसरे सीगोंकी रिस्वत तो मैं नही कह सकता मगर पुलिसमें जो रिश्वत नहीं लेता उसे मैं अहमक समझता हूँ। मैंने दो एक दयानतदार सब इन्सपेक्टर देखे हैं पर उन्हे हमेशा तबाह देखा। कभी मातूब, कभी मुअत्तल। कभी बर्खास्त। चौकीदार और कास्टेबल वेचारे थोडी औकातके आदमी हैं, उनका गुजारा क्योकर हो? वही हमारे हाथ-पाव है, उन्हींपर हमारी नेकनामीका दारमदार है। जब वह खुद भूखों मरेंगे, तन हमारी मदद क्या करेगे? जो लोग हाथ बढ़ा कर लेते हैं,खुद खाते हैं, दूसरोको खिलाते हैं, अफसरोंको खुश रखते हैं, उनका शुमार कारगुजार नेकनाम आदमियोंमें होता है। मैंने तो यही अपना वसूल वना रखा है और खुदाका शुक्र है कि अफसर और मातहत सभी खुश हैं।

शर्माजीने कहाइसी वजहसे तो मैंने ठाकुर साहसे कहा थिाक आप क्यों इस सीगेमे आये?