यह ग्रन्थ १४ चौदह समुल्लास अर्थात् चौदह विभागों में रचा गया है । इस में १० दश समुल्लास पूर्व और ४ चार उत्तरार्द्ध में बने हैं परन्तु अन्त्य के दो समुल्लास और पश्चात् स्वसिद्धान्त किसी कारण से प्रथम नहीं छप सके थे अब वे भी छपवा दिये हैं ॥
प्रथम समुल्लास में ईश्वर के ओंकारादि नामों की व्याख्या ।
द्वितीय समुल्लास में सन्तानों की शिक्षा ।
तृतीय समुल्लास में ब्रह्मचर्य्य, पठनपाठन व्यवस्था, सत्यासत्य ग्रन्थों के नाम और पढ़ने पढ़ाने की रीति ।
चतुर्थ समुल्लास में विवाह और गृहाश्रम का व्यवहार ।
पञ्चम समुल्लास में वानप्रस्थ और संन्यासाश्रम की विधि ।
छठे समुल्लास में राजधर्म ।
सप्तम समुल्लास में वेदेश्वरविषय।
अष्टम ससुचास से जगत् की उत्पत्ति, स्थिति और प्रलय ।
नवम समुल्लास में विद्या, अविद्या, बन्ध और मोक्ष की व्याख्या ।
दशवें समुल्लास में आचार, अनाचार और भक्ष्याभक्ष्य विषय ।
एकादश समुल्लास से आर्य्यावर्त्तीय मतमतान्तर का खण्डन मण्डन विषय ।
द्वादश समुल्लास में चार्वाक, बौद्ध और जैनमत का विषय ।
त्रयोदश समुल्लास में ईसाईमत का विषय ।
चौदहवें समुल्लास में मुसलमानों के मत का विषय ।
और चौदह समुल्लासों के अन्त में आर्य्यों के सनातन विहित मत की विशेषतः व्याख्या लिखी है जिसको मैं भी यथावत् मानता हूं ॥