पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/९८

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निविटी4.5-in, tarahe. चतुर्थसप्लस। ed पन्न के C A नेवाली ( उपस) प्रातःकाल की वेलाओं को ( दोषा ) रानी और ( वस्तो: दिन ( तनूना ) शरी की { नियम ) शोभा को ( जरिमा ) आतिशय वृद्धपन बल और शोभा को दूर कर देता है वैसे ( अहम् ) मै की वा पुरुष ( उ ) अच्छे | प्रकार ( आपि ) निश्चय कर प्रह्मचर्य से विद्या शिक्षा शरीर और आत्मा के बल और युवावस्था को प्राप्त हो ही के विवाह कर्फ इससे विरुद्ध करना वे विरुद्ध होने 1 से सुखदायक विवाह कभी नही होता ॥ ३ ॥ जबतक इसी प्रकार सब ऋषि मुनि राजा महाराजा आर्य लोग ब्रह्मचर्य से विद्या पढ़ ही के स्वयंवर विवाह करते थे तबतक इस देश की सदा उन्नति होती थी। जत्र से यह मह्मचर्य से विद्या का न पढ़ना, बाल्यावस्था में पराधीन अर्थात् माता पिता के आधीन विवाह होने लगा तघ से क्र मश: आ7यवर्दी देश क हानि होती चली आई है । इससे इस दुष्ट काम को छोड के सब्जन लोग पूत प्रकार से स्वयंवर विवाह किया करें सो विवाह वर्णानुक्रम से करें और वर्णव्यवस्था भी , कर्मस्वभाव के अनुसार होनी चाहिये । (प्रश्न ) क्या जिस की नाता ब्राह्मणी पिता ब्राह्मण हो वह ब्राह्मण होता है और जिसके माता पिता आन्यवर्णथ हों उन का सन्तान कभी नाट्ण हो सकता है ? (उत्तर) हां बहुतले होगयेहोते हैं ? और होंगे भी जैसे छान्दोग्य उपनिषद् में जावाल ऋषि अज्ञातकुलमहाभारत में विश्वामित्र क्षत्रिय वर्ण और मातंग ऋषि चांडाल कुल से माह्मण होगये थे, अब भी जो उत्तम विद्या स्वभाववाला है वही ब्राह्मण के योग्य और मूर्व शूद्र के योग्य होता है और वैसा ही आगे भी होगा ( प्रश्न ) भला, जो रज़ वीर्य से शरीर हुआ है वह बदल कर दूसरे वर्ष के योग्य कैसे हो सकता है ? ( उत्तर ) रज वीर्य के योग से ब्राह्मण शरीर नहीं होता किन्: - स्वाध्यायेन जखैहोंनेवैवियेनेज्यया सुतैः । | महायऐश्व यशैश्व ब्राह्मीयं क्रियते तनुः ॥ मनु० २ । २८ ॥ इसका अर्थ पूर्व कर आये हैं अब यहां भी संक्षेप से कहते हैं (स्वाध्यायेन ) पढ़ने पढ़ाने ( जमैः) विचार करने करानेनानाविध होम के अनुष्ठान, सम्पूर्ण वेदों को शब्दअर्थ, सम्बन्ध, स्वरोच्चारणसहित पढ़ने पढ़ाने ( इख्या ) पर्णमासी इष्टि आादि के करने, पूवोंक विधिपूर्वक ( सुनै: ) धर्म से सन्तानोत्पत्ति ( महायज्व )