पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/९५

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- - - सत्यार्थप्रकाशः ॥ .. .+ | का होना श्रम भव है वैसे ही गौरी, रोहिणी नाम देना भी अयुक्त है यदि गौरी : कन्या न हो किन्तु कली हो तो उसका नाम गौरी खना व्यर्थ है और गौरी । महादेव की स्त्री, रोहिणी वासुदेव की स्त्री थी उसको तुम पौराणिक लोग मातृ समान मानते हो जब कन्यामात्र में गौरी आदि की भावना करने हो नो फिर उन-: मे विवाह करना कैसे मंभव और धर्मयुक्त हो सकता है ! इसलिये तुम्हारे और : 'हमारे दो २ श्लोक मिथ्या ही हैं क्योंकि जैमा हमने "ब्रह्मोवाच" करके श्लोक बना लिये हैं वैसे वे भी पराशर आदि के नाम से बना लिये हैं इसलिये इन सब ' का प्रमाण छोड़ के वेदों के प्रमाण से सब काम किया करो, देखो मनु में:- त्रीणि वर्षारयुदीक्षेत कुमायूतुमती सती । अध्वं तु कालादेतस्मादिदेत सदृशं पतिम् । मनु०६।३०॥ कन्या रजस्वला हुए पीछ तीन वर्ष पर्यन्त पति का खांन करके अपने तुल्य , । पति को प्राप्त होवे जव प्रनिमास रजोदर्शन होता है तो तीन वर्ष में ३६ वार रज- स्वला हुए पश्चात् विच ह करना योग्य है इससे पूर्व नहीं । काममामरणात्तिष्ठेद् गृहे कन्य मत्यपि । न चैवैनां प्रयच्छेत्तु गुणहीनाय कर्हिचित् ॥मनु०६।८६॥ . चाहे लडका लड़की मरणपर्यन्त कुमारे रहैं परन्तु श्रमदृश अर्थान परस्पर विरुद्ध : जाता वा न चिरञ्जीवेज्जीवेद्वा दुर्बलेन्द्रियः ॥ तस्मादत्यन्तयालायां गर्भाधान न कारयेत् ॥ २ ॥ सुश्रुत शारीरस्थाने अ० १० । श्लो. ४७ । ४८ ॥ 3 अर्थ-मोलह वर्ष से न्यून वयवाली स्त्री में पच्चीस वर्ष में न्यून आयुवाला । पुरुष जो गर्भ को स्थापन करे तो वर कुन्निस्य हुश्रा गर्भ विपत्ति को प्राप्त होता । ! म त पुर्ण काल तक गर्भाशय में रहकर उत्पन्न नहीं होता । - अथवा उत्पन्न हो तो फिर चिरकाल तक न जीवे वा जीवे तो दुर्बलेन्द्रिय हो, इम कारण में प्रतिबाल्यावस्थावाली स्त्री में गर्भस्थापन न करे ॥ २ ॥ मे • शास्त्रोक्त नियम और मृष्टिक्रम को देखने और बुद्धि में विचारने में । यही मिद होना है कि १६ वर्ष में न्यून स्त्री और २५ वर्ष में न्यून आयुवाला पुरप कभी गर्भाधान करने के योग्य नहीं होता, इन नियमों से विपरीत जो करते में दु.पगागी होते हैं। - -