पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/९३

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८० सत्यार्थप्रकाश. न ऋक्ष अर्थात् अश्विनी, भरणी रोहिणीदेई, रेवतीवाई, चित्तरि आदि नक्षत्र , नामवाली, तुलमिश्रा, गदा गुलाबी, चंपा, चमेली श्रादि वृक्ष नामवाली, गङ्गा, यमुना आदि नदी नामवाली, चांडाली आदि अन्त्य नामवाली, विन्ध्या. हिमालया, पार्वती आदि पर्वत नामवाली, कोकिला, भैना श्रादि पर्वा नामवाली, नागी, भुजंगा आदि सर्प नामवाली, माधोदामी मीरादासी आदि प्रेण्य नामबालो और भीमकुंवरी, चण्डि- का, काली आदि भीपण नामवाली कन्या के साथ विवाह न करना चाहिये क्योंकि ये नाम कुत्सित और अन्य पदार्थों के भी हैं। अव्यङ्गाङ्गी सौम्यनाम्नी हंसवारणगामिनीम् । तनुलोसकंशदशनां मृदङ्गीमुद्रहस्त्रियम् ॥मनु० ३ ॥ १०॥ जिसके सरल सूये अङ्ग हो विरुद्ध न हों, जिसका नाम सुन्दर अर्थात् यशोदा, मुखदा आदि हो, हस और हथिनी के तुल्य जिसकी चाल हो, सूक्ष्म लोम केश और दांतयुक्त और जिसके सब अङ्ग कोमल हा वैसी स्त्री के साथ विवाह करना । चाहिये ( प्रश्न ) विवाह का समय और प्रकार कौनसा अच्छा है ( उत्तर ) सोल- हवं वर्ष में ले के चौबीसवें वर्ष तक कन्या और पञ्चीसवे वर्ष से ले के अड़तालीसवे वर्ष तक पुरुष का विवाह समय उत्तम है इममें जो सोलह और पञ्चीम में विवाह करे तो निकृष्ठ, अठारह वीस की बी तीस पैंतीम वा चालीस वर्ष के पुरुष का । म यम, चात्रीम वर्ष की स्त्री और अडतालीस वर्ष के पुरुष का विवाह होना उत्तम है। जिम देश में इसी प्रकार विवाह की विधि श्रेष्ठ और ब्रह्मचर्य विद्याभ्याम अ- धिक होता है. वह दंश मुखी आर जिम देश में ब्रह्मचर्य विद्याग्रहणरहित बाल्या. बम्धा और अयोन्यों का विवाह होता है वह देश दु ख में डूब जाता है । क्योंकि ग्रामचर्च बिया के प्रदरणपूर्वक विवाह के सुधार ही से सब बातों का सुधार और पिगड़ने में बिगाट होजाता है । ( प्रश्न ) अष्टवर्पा भवेद् गौरी नववर्षा च राहिणी ॥ दशवर्षा भवेत्कन्या तत ऊर्ध्व रजस्वला ॥ १॥ माता चैव पिता तस्या ज्येष्ठो भ्राता तथैव च ॥ प्रयम्ले नरकं यान्ति दृपवा कन्यां रजस्वलाम् ॥२॥ नो पार मंत्रोध में निन्य है । अर्थ यह है कि कन्या की नाग पंगती. बावस्या और उसके आगे रजस्वला संना +-