पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/८२

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तृतीयसमुल्लासः ? ६है 24 जो वेद को स्वर और पाठमात्र पद के अर्थ नहीं जानता वह जैसा वृक्ष, डाली, पच्चे, फल, फूल और अन्य पशु धान्य आदि का भार उठाता है वैसे भारवाह अर्थात् भार का उठनेव ला है और जो वेद को पढ़ता और उनका यथावत् अर्थ जानता है वहीं सम्पूर्ण अमन्द को प्राप्त होके देहान्त के पश्चात् ज्ञान से पाप को छोड़ पघिन धर्माचरण के प्रताप से सर्वानन्द को प्राप्त होता है । उत स्वः पश्यन्न देदश वाचमृत व घूचन्न 'णा नार्मा 1 उतों वस्मै तन्वे2 विरूद जागूव पयं उर्ती - वास: 11 प• ॥ में • १• 1 ० ७१ से ० ४ I जो अविद्वान् हैं वे सुनते हुए नहीं सुनतेदेखते हुए नहीं देखतेबोलते हुए नहीं बोलते अर्थात् अविद्वालु लोग इस विद्या बाणी के रहस्य को नहीं जान सकते किन्तु जो शद अर्थ और सम्बन्ध का जाननेवाला है उसके लिये विद्या जैसे सुन्दर व आभूषण भारण करती आ५ ने पति की कामना करती हुई स्त्री अपना शरीर और स्वरूप ा प्रकाश ति के सामने करती है वैसे विद्या विद्वान् के लिये अपने स्त्र रूप का प्रकाश करत है अविवाओं के लिये नहीं ॥ भुच अक्षर परमे सन् यदेिवा अधिविश्चे नि . 6दुः। यस्तन्न वेढ़ किमृचा करिचयति य इत्तफदुस्त मे समस ॥ ०' ॥ मं० १ । सू० १६४ । मं० ३४ ॥ जिस व्यापक अविनाशी सरकृष्ट परमेश्वर में सब विद्वान् और पृथिवी सूर्य आदि सव लोक स्थित हैं कि जिसमें सत्र वेदों का मुख्य तात्पर्य है डम ब्रह्मा को जो नहीं जानता वई ऋग्वेद :दि से क्या कुछ सुख का Iत हो सकता है ? नहीं २ किन्तु जो वेदों को पढ़ के धमरमा योगी होकर उस ब्रह्मा की जानते हैं वे सब परमेश्वर में स्थित होके मुक्तिरूपी परमानन्द को प्राप्त होते हैं इसलिये जो कुछ पढ़ना व। पढ़ाना हो वह अर्थज्ञान हित चाहिये । इस प्रकार सत्र वेदों को पढ़ के आयुर्वेद अर्थात् जो चरक, सुश्रुत आदि ऋषि मुनिश्रणति वैद्यक शान है उसको अर्थक्रिया, श, छदन, भेदनलेप, चिकित्सा, निदानऔषध, पथ्य, शरीर, देश, काल और वस्तु के गुण ज्ञानपूर्वक ४ (चार ) वर्ष के भीतर पड़े पहुखें , तदनन्त धनुर्वेद अर्थात जो जबधी काम करना है इसके दो भेद एक निज राजपुरुष सम्त्रन्वी छोर 9