पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/७४

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

तृत्यसमुल्लास’ ! ६१ एकद्रव्यमगुएँ संयोगविभागेश्वनपेक्षकारणमिति क लक्षणम् ॥ वै° । अ० १ । आ० १ । सू० १७ ॥ ‘एकन्द्रव्यमाश्रय यस्य आधारो यस्य तदेकद्रयं न विद्यते गुणो यस्मिन् बा तदगुण संयोगेड विभागेपु चापेक्षरहित कारर्ण तस्करोंलक्ष्णम्' “अथवा यत् क्रियत्ते तकर्मलक्ष्यते येन तल्लक्षण, कर्मंण लक्षण कमल क्षणम्' द्रव्य के आश्रित गुणों से रहित सयोग और विभाग होने में अपेक्षारहित कारण हो उसको कर्म कहते हैं ॥ द्रव्यगुणकमेॉ द्रव्य कारण सामान्य ॥ वै० । अ० १ ' अ० १ । सू० १८ ॥ जो कार्य द्रव्य गुण और कर्म का कारण द्रव्य है वह सामान्य द्रव्य है । द्रव्याणा द्रव्य कार्यो सामान्यम् 1 वें० । अय० १ । आ० १ । सू० २३ ॥ जो द्रयों का कार्य द्रव्य है बहू का पन से सब कार्यों में सामान्य है । ! 9 द्रव्यवं गुणव कमत्वज्व सामान्यानि शाश्व ॥ वै०। य० १ । आा० २१ सू० ५ ॥ द्रव्यों से द्रव्यपन गुणों में गुणपन कमरों में कमेपन ये सब सामान्य और विशेष कहाते हैं क्योकि द्रव्यों में द्रव्यत्व सामान्य और गुणव कर्मत्व से द्रव्यत्व विशेष है इसी प्रकार सर्वत्र जानना ॥ सामान्यं विशेष इति र बुद्धयपेक्षम् ॥ वै०। अ० १ । आ० २ । ° ३ ॥ सामान्य और विशेष बुद्धि की अपेक्षा से सिद्ध होते है। जैसे मनुष्य व्यक्तियों में मनुष्यत्व सामान्य और पशुवादि से विशेप तथा स्त्रीत्व और पुरुषत्व इनमें ब्राह्मणत्व क्षत्रियव वैश्यत्व शुद्धत्व भी विशेप हैं । ब्राह्मण व्यक्तियों में झणत्व सामान्य और क्षनियदि से विशेष हैं इसी प्रकार सर्वश्र जानो ॥ इदमिति यतः कार्यकारणयोः स समवायः ॥ वै०। अ० ७। आ० २ । ० २६ ॥