पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/५९२

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आ ५९ - थरथार्थप्रकाशः ! 1 जावेगा हर जीव को जो कुछ किया है और वे अन्याय न किये जायेंगे ॥ में ० ३। ति ० १४ : सू० १६। आ ० ११५ । ११ ॥ समीक्षक-जब खुद ही ने मोहर लगा दी तो वे विचारे विना अपरोष मार गये क्योंकि उनको पराधीन कर दिया यह कितना बड़ा अपराध है१ और फिर कहते हैं कि जिने जितना किया है उतना ही उख को दिया जायगा न्यूनाधिक नहीं, का उन्होंने स्वतन्त्रता से पाप किये ही नहीं किन्तु खुदा के कराने से किये पुन: उनका अपराध ही न हुआ उनको फल न मिलना चाहिये इसका फल खुदा को मिलना उचित है और जो पूरा दिया जाता है वो क्षमा किस बातकी क जाती है और जो क्षमा की जाती है तो न्याय उड़ जाता है ऐसा गड़बड़ायाय ईश्वर का कभी नहीं हो सकता किन्तु निर्बुद्धि छोकरों का होता है ॥ १०१ ॥ १०२और जिया इमने दोज़ख़ को वास्ते काफ़िरों के घेरने वाला स्थान है। और हर आदमी को लगा दिया हमने खुद को अमरनामा उम्र का बीच गर्दन उस की के और निकालेंगे हम वास्ते उस के दिन तक ग्रासत के एक किताब कि देखेगा उ को खुला हुमा ॥ और बहुत सारे हमने कुरनून से पीछे नूह के ॥ सं० ४ । ५ि० १५ । सू° १७ । आ० ७ । १२ । ११ 11 समीक्षक-यदि काफ़िर वे ही हैं कि जो कुIन, पैगम्बर और कुरान के कहे खुt सावई आrमान र नमाज़ आदि को न मानें और उन्हीं के लिये दोज़बू होवे तो यह बात केवल पक्षपात की है क्योंकि कुरान ही के मानने वाले सब अच्छे और न्य के माननेवाले खचव बुरे क भी हो सकते हैं ? यह बड़ी लड़कपन की बात है कि प्रत्येक की गर्दन में कई पुस्तक, म तो किसी एक की भी गर्दन में नहीं देखते । यदि का प्रयो ऑन क में का फ देना है तो फिर समय के दिलों ने अदि पर मोर रख ना और पार्षों का क्षमकरना क्या खेल म चtया है : कयामत की रात ने किताब निकलेगा खुदा तो आज इल किता कहां है ? क्या हूकार की 1 पी वे मान लिलता रहता है ' य ३ यहू विचारना चाहिये कि जो पूर्व जन्म नहीं नत के क में ही नई व पते फिर कर्म की रेखा या लिखी और जो विना 5 ति में के दा दो टन १६ अन्याय किया पों िविनय अच्छे बुरे कर्मों के उनको .य व क्यों जो कहो कि की मरजी, वो बि दिया ? खुदा भी उठ ने अन्याय , अक्राप -६हे हैं 6ि दिना ६२ मले क मैं किये दुः सुखरूप की न्यून' ) at ६ ए प दो ही दम थम बैग वा कोई ठितार सुना गt l t t के