पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/५६७

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चतुर्दशखमुखः ॥ ५६५ +5 ७ - - । सीक्षक-यह कैसे सम्भव है कि इबराहीम के दीन को नहीं मानते वे सब मूर्ख ? इराहीम को ही खुदा ने पसन्द किया इसका क्या कारण है ? यदि वर्मा रमा होने के कारण से किया तो धर्मामा और भी बहुत हो सकते हैं ? यदि विना धमत्म होने के दो पसन्द किया तो अन्याय हुआ । हां यह तो ठीक है कि जो धर्मात्मा है वही ईश्वर का प्रिय होता है अधर्मी नहीं ॥ २९ ॥ ३०नेश्वय हम तेरे मुख को आसमान में फिरता देखते हैं अवश्य हम तुझे उस किले को फेरेंगे कि पसन्द करे उनको बस अपना मुख मस्जिदुल्हराम की और फेर जहां कहीं तुम हो अपना मुख उस की ओोर फरलो 1 में ० १। चि ० २। - ए - स० २ । भा० १३५ ! समीक्षक-क्या यह छोटी बुरपरस्ती है १ नहीं बड़ी (पूर्वपक्षी) हम मुसलमान लोग बुरपरस्त नहीं हैं किन्तु वृशिकत अथों सूत्रों को तोड़नेहारे हैं क्योंकि इस विले को खुदा नहीं समझते । ( उत्तरपक्षी ) जिन को तुम बुनपरस्त समझते हो वे भी उन २ मूत् को ईश्वर न समझते किन्तु उनके सामने परमेश्वर की भक्कि करते हैं यदि बुतों के तोड़नेहारे हो तो उस मस्जिद किबले बड़े बुद्ध को क्यों न तोड़ा १ ( पूर्वी ) वाहजी ! हमारे तो जिले की ओर मुख करने का कुरान में हुक्म है और इनको वेद में नहीं है फिर वे बुतपरस्त क्यों नहीं और हम क्यों ? क्योंकि हम को खुद का हुक्म बजाना अवश्य है । ( उत्तरपक्षी ) जैसे तुम्हारे लिये कुरान में हुक्म है वैसे इनके लिये पुराण में आता है। जैसे तुम कुरान को खुद का कलाम समझते हो वैसे पुराणी पुराणों को खुदा के अवतार व्यासजी का वचन समझते हैं, तुम में और इनमें बुतपरस्ती का कुछ भिन्नभाव नहीं है प्रत्युत तुम बड़े बुरपरस्त और ये छोटे हैं क्योंकि जब तक कोई मनुष्य अपने घर में से प्रविष्ट हुई बिल्ली को निकालने तबतक उसके घर में ऊंट प्रविष्ट होजाय वैसे ही लगे व मुहम्मद साहेब ने छोटे बुको सुपल मानों के संतसे निकाला परन्तु बड़े बत् ! जो कि पहई सदृश मक्कडी मस्जिद है वह सब मुसलमानों के मतमें प्रविष्ट करा दी क्या यह छोटी बुपरस्ती है ? हां जो हम लोग वैदिक हैं वैसे ही तुम लोग भी वैदिक हो जाओ तो बुरपरस्ती आदि बुराइयों से बच सको अन्यथा नहीं, तुमको जबतक अपनी बड़ी निकाल दो तबतक दूसरे छोटे के बुरपरस्ती को न बुपरस्तों खण्डन खे जाजत हो के निवृत्त रहना चाहिये और अपने को बुतपरस्सी से पृथक करके पवित्र करना चाहिये 1 ३० ॥ ५