पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/५५४

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- किया कि पानी का ५५ अनुभूमिका ॥ क्षणभन जीवन में पराई हानि करके लाभ से स्वयं रिक रहना और अन्य को रखना मनुष्यपन से बहिः है इसमें जो कुछ विरुद्ध लिखा गया हो उसको सज्जन 1 लोग विदित कर देंगे तत्पश्चात् जो उचित होगा तो माना जायगा क्योंकि यह लेख इठ, दुराग्रह, ईष्र्या, द्वेष, वाद विवाद और विरोध घटाने के लिये किया गया है न कि इनको बढ़ाने के अर्थ क्योंकि एक दूसरे की हानि करने व पृथ रह पर- ' स्पर को लोभ पहुंचाना हमारा मुख्गकमें है। अब यह चौदहवें समुदाय में मुसल सानों का मतविषय सब सज्जनों के सामने निवेदन करता हूं विचार कर इष्ट का प्रहण आiनेष्ठ का परित्याग कीजिये ॥ अलमतिविस्तरेण बुद्धिमढ़ौंड ॥ इत्यढभूमिका. । है . .