पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/५५

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- - ४२ ~ ~ ~- ~- सत्यार्थप्रकाशः । को बढाओ जैसे मैं इस ब्रह्मचर्य का लोप न करके यज्ञस्वरूप होता हूं और उसी प्राचार्यकुल से आता और रोगरहित होता हूं जैसा कि यह ब्रह्मचारी अच्छा काम करता है वैसा तुम किया करो । उत्तम ब्रह्मचर्य ४८ वर्ष पर्यन्त का तीसरे प्रकार का होता है, जैसे ४८ अक्षर की जगती वैसे जो ४८ वर्ष पर्यन्त यथावत ब्रह्मचर्य करता है, उसके प्राण अनुकूल होकर सकल विद्याओं का ग्रहण करते हैं । जो आचार्य और माता पिता अपने सन्तानों को प्रथम क्य में विद्या और गुणग्रहण, के लिये तपस्वी कर और उसी का उपदेश करें और वे सन्तान आप ही आप अ- खण्डित ब्रह्मचर्य सेवन से तीसरे उत्तम ब्रह्मचर्य का सेवन करके पूर्ण अर्थात् चारसौ | वर्ष पर्यन्त आयु को बढावें वैसे तुम भी बढ़ाओ ! क्योकि जो मनुष्य इस ब्रह्मचर्य को प्राप्त होकर लोप नहीं करते वे सब प्रकार के रोगों से रहित होकर धर्म, अर्थ, . काम और मोक्ष को प्राप्त होते हैं । चतस्रोऽवस्था: शरीरस्य वृद्धियोवनं सम्पूर्णता किञ्चि- त्परिहाणिश्चेति । भाषोडशाइद्धिः। आपञ्चविंशतेयौवनम् । आचत्वारिंशतः सम्पूर्णता । ततः किञ्चित्परिहाणिश्चेति ॥ पञ्चविंशे ततो वर्षे पुमान् नारी तु षोडशे । समत्वागतवीर्यो तौ जानीयात्कुशलो भिषक् ॥ __ यह सुश्रुत के सूत्रस्थान ३५ अध्याय का वचन है। इस शरीर की चार अवस्था हैं एक (वृद्धि ) जो १६ वें वर्ष से लेके २५ वें वर्ष पर्यन्त सब धातुओं की वढती होती है। दूसरी ( यौवन ) जो २५ वे वर्ष के अ-व और २६ वें वर्ष के आदि में । युवावस्था का प्रारम्भ होता है। तीसरी (सम्पूर्णता ) जो पच्चीसवें वर्ष से लेके चालीस वर्ष पर्यन्त सय धातुओं की पुष्टि होती है । चौथी (किञ्चित्परिहाणि ) जव सब साहो- पाग शरीरस्थ सकल धातु पुष्ट होके पूर्णता को प्राप्त होते हैं तदनन्तर जो धातु वढता है वह शरीर में नहीं रहता, किन्तु स्वप्न, प्रस्वेदादि द्वारा बाहर निकल जाता है, वही ४१ वा, वर्ष उत्तम समय विवाह का है अर्थात् उत्तमोत्तम तो अड़तालीसवें वर्ष में विवाह फरना । (प्रश्न ) क्या यह ब्रह्मचर्य का नियम स्त्री वा पुरुष दोनों का तुल्य ही है ? (उत्तर) नहीं जो २५ वर्ष पर्यन्त पुरुप ब्रह्मचर्च करे तो १६ वर्ष पर्यन्त कन्या, जो