पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/५४४

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५, २ सत्यप्रकाशः ? में ऐसे स्वर्ण, एस ईश्वर और ऐसे मत के लिये हम सब आठ ने तिलाश्वलि दे दी है ऐसा बखेड़ा ईसाइयों के शिर पर ये भी सर्वशक्तिमान की कृपा से दूर होजाय तो बहुत अच्छा हो ॥ १०९ ॥ ११०और मैंने दूसरे पराक्रमी दूत को स्वर्ग से उतरते देखा जो मेय को और था और उस के शिर पर मेव, धनुष था और उसका मुह सूर्य की नाई और उम्र के पांव आग के खम्भों के ऐसे थे । और उसने अपना दहिना पांव समुद्र पर और बांयां पृथिवी पर रक्खा ॥ यो० प्र० ५० १० । आ० १ 1 २ । ३। ॥ समीक्षक-अब देखिये इन दूतों की कथा जो पुराणों वा भार्टी की कथाओं से भी बढ़कर है ॥ ११० ॥ १११-और लग्गी के समान एक नकट सु दिया गया और कहा गया कि उठ ईश्वर के सन्दिर को और बेदी और उसमें के भभजन करनेहारों को नाप ॥ यो० म० प० ११ । आ० १ ॥ । समीक्षक-यहां वो क्या परन्तु ईसाइयों के तो स्वर्ग में भी मन्दिर बनाये और नापे जाते हैं अच्छा है उनका जैसा स्वर्ग है वैसी ही बातें हैं इसलिये यहां प्रभु भोजन में ईसा के शरीरावयव मांस लोहू की भावना करके खाते पीते हैं और गिजों में भी फ्रेश आदि का आकार बनाना आदि भी बुरपरस्ती है ॥ १११ ॥ ११२और स्वर्ग में ईश्वर का मंदिर खोला गया और उसके नियम का ख - दूक उसके संदिर में दिखाई दिया हैय० प्र० प० ११ । आ० १६ ॥ ए। समीक्षक-वर्ग में जो मंदिर है सो हर समय बंद रहता होगा कभी २ खोला जाता होगा क्या परमेश्वर का भी कोई मंदिर हो सका है १ जो वेदोक पर माइमा सर्वव्यापक है उसका कोई भी मन्दिर नहीं हो सका । हां ईसाइयों का ' परमेश्वर जो आकारवाला है उसका चार्टी स्वर्ग में हो चाहें भूमिमें हो और जैसी लीला छंटन पू चू की यहां होती है वैसी ६ इस।इयों के स्वर्ग में भी । और नियम का संदूक भीं कभी २ ईसाई लोग देखते होंगे उससे न जाने क्या प्रयोजन सिद्ध करते होंगे सब तो है कि ये सब बातें मनुष्यों को लुभाने की हैं ॥ ११२ ॥ यद के ११३-और एक बड़ा आश्चर्य वर्ग में दिखाई दिया अर्थात् एक की जो सूखे पदिन चाँद उसके वले है और उसके पर वार है और पओिं शिर बारी मुकुट का |