पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/५२८

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५२५ चत्ाकश: 1 ये सब बातें तडतों के खेलपन की हैं जैसे कितने ही साधु वैरागी ऐसी छछ की गईं करके भोले मनुष्यों को ठगते हैं वैसे ही ये भी हैं : ७२ ॥ ७३और तब वह हरए मनुष्य को उसके कार्य के अनुसार फल देगा । हूं ० से २ प० १६ 5 अf o २७ ll खमीक्षक-जब कर्मोनुसार फल दिया जायगा तो हइयों का पाप जमा होने का उपदेश करना व्यर्थ है और वह सचा हो तो यहूं झूठा कहे कि वे, यदि कोई क्ष ममा करने के योग्य दमा लिये जाने और क्षम न करने के योग्य क्षमा नहीं किये जाते हैं यह भी ठीक नहीं क्योंकि सब कमों का फल यथायोग्य देने से न्याय और f परी दया होती है ॥ ७३ ॥ ७४ •हे अविश्वासी और इठीले लोगो ! मैं तुम वे सत्य कहता हूं यदि तुमकों रई के एक दाने के प्रय विश्व.ख हो तो तुम इस पढ़ से जो कहोगे कि यह से वहां चला जाय वश चला जायगा और कोई काम तुम से नहीं tt R 1ध्य होगा , म० प ७ १७ } अ१० १७ 1 २० ll समीक्षक-अब जो ईं खाई जोग डबवेश करते फिरते हैं 56 कि आो हमारे मत में प क्षमा कराओ कि प।i आदि वह सब मिथ्या वIत है । क् िजां ईला में पाप ने विश्वास जमाने और वित्र करने की तमर्थ होता तो अपने शियां के आदमों को निशप विश्ववी पवित्र क्यों न कर देत १ जो ईसा के साथ २यू ते थे जब उन्हीं को शुद्धविश्वमुखी और कल्याण न कर खा तो वह मरे पर न कहा है ? इस समय किसी ो पवित्र नहीं कर सकेगा, जब ा के चेके रE विश्वास से रहित थे और उर्टी ने यह इजील पुरत बनाई है तब इसका प्रयए न हो सकता क्योंकि जो मविश्वासी आपवित्रामा य धर्म मनुष्यों का लेख ठा वन पर विश्वठ से रनव कल्याण की इच्छा करने वाले व से यह विद्ध हो सकता है कि जो ईgा का दमन करना है तो किसी ईखाई में । ननु5ों का काम नहीं और भई एक रई के दने के तमाम विश्वास ईमान नीं है जो कोई कहे िम म पूरा वा कोई विश्वास है वो इसे कहा कि आप इस पहाड़ को त:ों में से इट' दव यदि इन 5 tने हट ।य वो भी पूरा विवाद नहीं किन्तु एऊ रtने " ड , के परस्पर है और जो न झटर ख के वो व मनो ह5 छटा भी विवाख, 1 4, 4 Ary , ईशयों में नहीं हैं यदि ई-56 कि यह अभिमान tiटू द फै। ( ki में ५६-४ ६ से औi r यभ न मुई , में कि यह ा ा , '। t d त्रवे, सद !