पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/५२१

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

नयांदखमुला: । ५१ । क्षणे रुष्ट: क्षणे तुष्टो रुष्टस्तुष्टः क्षणे क्षण । 1 अव्यवस्थितचित्तस्य प्रसादsषि भय झरः ॥ & ॥ जब का मुख्य क्षणम प्रसा, एस आपस न देता है अर्थात् व २ में है प्रसन्न अप्रसन्न होवे उसकी प्रसन्नता भी संयद्थक होती है वैसी लीला ईसाइयाँ ! मैं ईश्वर की हैं !! ५७ ! ऐयूब की पुस्तक। ५८ और एक दिन ऐसा हुआt कि परमेश्वर के आगे ईश्वर के पुत्र आखड़े हुए आiर शैतान भी उनके मध्य म पर सश्वर के आा आखड़ा हुआ।र पर मश्वर न शैतान से कहा कि तू कdां से आता हूं न तान न स्तर ऊं के परमेश्वर से कहा कि पृथिवी पर झूमते ोर इधर उधर से फिरते चला आता हूं तब पर मेश्वर ने शैतान से पूछा कि तूने मेरे दास एयूब को जांचा है कि उसके समान पृथिव में कोई नहीं है वह सिद्ध और खरराजन ईश्वर से डरता और पार्ष से आ लग रहता 2 से ' दे र अबला अपनी सच्चाई की र रक्खी है आर छून मुझे उस अकारण नाश करने की ठभt t तब शस्तान में उतर द पर सेश्वर से कहा कि ग्राम क लिय चम दा जो मनुष्य का है न अपने प्र।ण क लेप दंगा I परन्तु अब अपना ाथ बढ़ा 'छोर उसक ाड़ सांस की तव व६इन सन्द ठ तर सात यागंगा तब पर मश्वर में शैतान से कहा कि दस व पर हाथ म कवल उसक माण का व चा। ये हैं - तब तन परमेश्वर के आग से चला गया शेर एंघ का शिरस तलव ला बुर का डॉ , स मा ॥ जबूर एयू° प० २ । आ० १ । : । । ४ से ५ । ६ । ७ ॥ समीक्षक -—अब देखिये ! ईसाइयों के ईश्वर का सामर्य कि शैतान उसके सामने ड के भक्तों को दुःख देता है, न तान को दण्ड, न अपने भक्तों को बचा सकता है और न दूलों में से कोई उसका सामना कर सकता है । एक शैतान ने सबको

भयभीत कर रखा है और ईइयों का ईश्वर भी सर्वे नहीं है जो सब होता

दो फ्यूब की परीक्षा शैतान से क्यों करता ॥ ५८ !! उपदेश की पुस्तक। ५९-- ां मेरे अन्तकरण ने बुद्धि और ज्ञान बहुत देखा है और मैंने युद्धि औोर ? ' बiान आर मूलत जानन f मन लगाया में न जान लिया कि यद भी न r