पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/५०

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तूतयसमुल्लास ॥ ३७ पाप करने की इच्छा भी कभी न करे । यह सन्योपासन एकान्त देश में एकाग्र चित् स कर ]। अपां समीपे नियतो नैत्यिक विधिमास्थितः। साiत्रमयीयत गवारण्य समाहितः ॥ म° अ० २ । १०४ ॥ जक्रैल में अथत एकान्त देश में जा सवधान हों के जल के समीप स्थित हो के नित्यकर्म को करता हुआ सावित्री अर्थात् गायत्री सत्र का उच्चारण अर्थ- ज्ञान और उसके अनुसार अपने चाल चलन को करे पर न्तु यह जप मन मे करना 1 उत्तम है । दूसरा देवयज्ञ जो अग्निहोत्र और विद्वानों का सत्र सेवादिक से होता है । सन्ध्या और अग्निहोत्र समय प्रात दो ही काल में करे दो ही रात दिन की सन्धिवेला हैं अन्य नहीं, न्यून से न्यून एक घटा ध्यान अवश्य करे जैसे समाधिस्थ होकर योशी लोग परमात्स का ध्यान करते हैं वैसे ही सन्योपासन भी किया करे । तथा सूर्योदय के पश्चात् और सूर्यास्त के पूर्व अग्निहोत्र करने का समय है उसके लिये एक किसी धातु व मट्टी की ऊपर १२ व १६ अबुल चौकोन उतनी ही ईि गहिरी और नीचे ३ वा ४ अडल परिमाण से वेदी इस प्रकार 47) बनावें अर्थात् ऊपर जितनी चौडी हो उसकी चतुर्थाश नीचे - "/ 'चौड़ी है । उसमें चन्दन पलाश वा आम्रादि के श्रेष्ठ काप्टों के टकडे उसी वेदि के परिमाण से बडे छोटे करके उसमें रक्खे उसके मध्य में अग्नि रखके पुन: उस पर समिधा अर्थात् पूवक्त इन्धन रख दे एक प्रोक्षणायन। ऐसा और तीसरा प्रणीतापात्र हैं - से इन्डि इंस प्रकार का टिका और एक इस प्रकार की आज्यस्थाली अर्थात् धुत रखने का पात्र र चमस (-==e ऐसा सोने चांदी वा काष्ठ का बनवा के प्रणीता और प्रोक्षणी में जल तथा मृतपात्र में मृत रब के व्रत को तपा लेखे प्रणीता जल रखने और प्रोक्षणी इसलिये है कि उससे हाथ धोने को जल लेना सुगम है । पश्चात् उस घी को अच्छे प्रकार देख लेवे फिर इन मन्त्रो से होम करे । अ ओं मूरग्य प्राणय स्वाहा । भुवॉयवेSपानाय स्वाहा। स्वरादित्याय यानीय स्वाहा -1 -भुवः स्वरग्निवार्यादित्ये- व्यः प्राणापानइयानेभ्यः स्वाहा ॥