पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/४९२

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अनुभूमिका (३) । जो यह बाइबल का मत है वह केवल ईसाइयों का है सो नहीं किन्तु इससे यहूदी आदि भी गृहीत होते हैं। यहां १३ ( तेरहवें । समुल्लास में ईसाई मत है | विषय में लिखा है इसका यही अभिप्राय है कि आजकल बाइवन के मत में ईसाई मुख्य हो रहे हैं और यहूदी अादि गौणे हैं मुख्य के ग्रहण से गौण का प्रण होजाता है, इससे यहूदियों का भी ग्रहण समझ लीजिये इनका जो विषय यहां लिखा है सो केवल बाइबल में से कि जिसको ईसाई और हूदी आदि सत्र मानते हैं और इसी पुस्तक का अपने धर्म का मूल कारण समझते हैं। इस भूस्तक के भाषान्तर बहुत से हुए हैं जो कि इनके मन में बड़े २ पादरी हैं उन्होंने किये हैं में से देवनागरी वा संस्कृत भाषान्तर देखकर मुझ को बाइवल में बहुत सी शक हुई हैं उनमें से कुछ थोडीसी इस १३ ( तेरहवें । समुल्लास में सव के विचारार्थ लिखी हैं लक्ष केवल सत्य की वृद्धि और असत्य के हास होने के लिये है न कि किसी को दुःख वा हानि करने अथवा मिथ्या दोष लगाने के अर्थ । इसका अभिप्राय उत्तर ले। सव कोई समझ लेंगे कि यह पुस्तक कैसा है और इनका मत भी कैसा है इस लेख से यही प्रयोजन है कि सव मनुष्यमात्र को देखना सुनना लिखना आदि करना सहज होगा और पक्षी प्रतिपक्षी होके विचार कर ईसाई मत का आन्दोलन सब कोई कर सकेंगे इससे एक यह प्रयोजन सिद्व होगा कि मनुष्यों को धर्मविषयक ज्ञान बढकर यथायोग्य सत्याऽसत्य मत और कर्तव्याऽकर्तव्य कर्मसम्बन्धी विषय विदित होकर सत्य और कर्त्तव्यकर्म का स्वीकार, असत्य और अकर्तव्यकर्म का परित्याग करना सहजता से हो सकेगा। सब मनुष्यों को उचित है कि सव के मतविषयक पुस्तकों को देख समझ कर कुछ सम्मति वा असंमति देवें वो लिखे नहीं तो सुना करें, क्योकि जैसे पढ़ने से पण्डित होता है वैसे सुनने से बहुश्रुत होता है। यदि श्रोता दूसरे को | नई समझा सके तथापि आप स्वयं तो समझ ही जाता है, जो कोई पक्षपातरूप या तारूढ़ होके देखते हैं उनका न अपने और न पराये गुण दोष विदित हो सकते हैं