पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/४७७

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। द्वादशशुवासः ॥ . ४७५ से जैन लोगों का केशलुञ्चन सर्वत्र प्रसिद्ध हैं और पांच मुष्टि लुञ्चन करना इत्यादि भी लिखा है। विवेकसार भा० पृष्ठ २१६ में लिखा है कि पांच मुष्टि लुञ्चन र चारित्र ग्रहण किया अर्थात् पांच मूठी शिर के बाल उखाड़ के साधु हुआ । (कल्पसूत्रभाष्य पृष्ठ १०८ ) केशलञ्चन करे गौ के बालों के तुल्य रक्खे । { समीक्षक ) छाब कहिये जैन लोगो ! तुम्हारा दया धर्म कहां रहा ? क्या यह हिंसा अर्थात् चाई अपने हाथ से लुचन करे चाहे उस का गुरु अरे वा अन्य कोई परन्तु कितना बड़ा कष्ट इस जीव को होता होगा ? जीव को कष्ट देना ही हिंसा कहाती है। विवेकसार पृष्ठ संवत् १६३३ के साल में श्वेताम्बरों में से ढूंढिया और ढूंढियों में से तेरहपन्थी आदि ढोंगी निकले हैं। ढूंढिये लोग पाषाणादि मूर्चि को नहीं मानले और वे भोजन स्नान को छोड़ सर्वदा भुखपर पट्टी बांधे रहते हैं और जती आदि भी जब पुस्तक बांचते है तभी मुखपर पट्टी बांबते हैं अन्य समय नहीं । ( प्रश्न ) मुखपर पट्टी अवश्य बां धना चाहिये क्योंकि ‘‘वायुकाय अर्थात् जो वायु में सूक्ष्म शरीरवाले जीव रहते हैं वे मुख के बाफ की उम्णता से मरते हैं और उस का पाप सुख पर पट्टी न बांधनेवाले पर होता है इसीलिये हम लोग मुख पर पट्टी बावना अच्छा समझते हैं। ( उत्तर । यह बात विद्या और प्रत्यक्ष आदि प्रमाण की रीति से अयुक्त है क्योंकि जीव अजर अमर है फिर वे मुख की बफ से कभी नहीं मर सकते इनको तुम भी अजर अमर मानते हो।( प्रश्न) जीव तो नहीं भरता परन्तु जो मुलक उदण वायु से उन को पीड़ा पहुंचती है। इस पीडा पहुंचाने वाले को पाप होता है इसलिये मुख पर पट्टी बांधना अच्छा है। (उत्तर) यह भी तुम्हारी बात सर्वथा असंभव हैं क्योंकि पीडा दिये बिना किसी जीव का किंचित् भी निर्वाह नहीं हो सकता जब मुख के वायु से तुम्हारे मत में जीवों को पीडा पहुंचती है तो चलने, फिरने, बैठन, हा उठाने और नेत्रादि के चलाने में भी पीड़ा अवश्य पहुंचती होगी इसलिये तुम भी जीवों को पीड़ा पहुंचाने से पृथक् नहीं रह सकते । ( प्रश्न ) इT, जहान ६ बने सके वहांतक जीवों की रक्षा करनी चाहिये और जहा हम नहीं बचा सकते वहा अशक्त हैं क्योंकि सब वायु आदि पदार्थों में जीव भरे हुये हैं जो हम मुख पर पड़ा न बांईं तो बहुत जीव मरें कपड़ा बांधने से न्यून मरते हैं । (उत्तर ) यः भी तुम्हार। कथन युक्तिशून्य है क्योंकि कपड़ा बांधने से जीवों को अधिक दु.ख पहचता है जब कोई मुख पर कपड़ा वाधे तो उसका मुख का बायु रुक के नीच वा पाश्च और मौन समय में नक्षिकाद्वारा इकट्ठा होकर वेग लेने के 11 है उसे उत।