पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/४६९

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- ~~ ~-- । द्वादशसमुल्लासः ॥ । ४६७ सब श्रावकों का देवगुरुधर्म एक है चैत्यवन्दन अर्थात् जिनप्रतिविम्ब मूर्तिदेवल और जिनद्रव्य की रक्षा और मूर्ति की पूजा करना धर्म है॥( समीक्षक) अब देखो ! जितना मूर्तिपूजा का झगड़ा चला है वह सब जैनियों के घर से और पाखण्डों का मूल भी जैनमत है । श्राद्धदिनकृत्य पृष्ठ १ में मूर्तिपूजा के प्रमाणः- , नवकारेण विवोहो ॥ १॥ अनुसरणं सावउ ॥ २ ॥ वयाई इमे ॥ ३ ॥ जोगो ॥ ४ ॥ चिय वन्दणगो ॥ ५ ॥ यच्चरखाणं तु विहि पुच्छम् ॥ ६ ॥ इत्यादि श्रावकों को पहिले द्वार में नवकार का जप कर जाना ॥ १ ॥ दूसरा नवकार जपे पीछे मैं श्रावक हूँ स्मरण करना ।। २ । तीसरे अणुव्रतादिक हमारे कितने हैं॥ ३॥ चौथे द्वारे चार वर्ग में अग्रगामी मोक्ष है उसे कारण ज्ञानादिक है। सो योग उसका सब अतीचार निर्मल करने से छः आवश्यक कारण सो भी उपचार से योग कहता है सो योग कहेंगे ॥ ४॥ पांचवें चैत्यवन्द अर्थात् मूर्ति को नमस्कार द्रव्यभाव पूजा करेंगे ।। ५ ।। छठा प्रत्याख्यान द्वार नवकारसीप्रमुख विधिपूर्वक कहूंगा इत्यादि ॥ ६ ॥ और इसी ग्रन्थ में आगे २ बहुतसी विधि लिखी हैं अथत् संध्या के भोजन समय में जिनविम्ब अर्थात् तीर्थंकरों की मूर्ति पूजना और द्वार पूजना और द्वारपूजा में बड़े २ बखेड़े हैं। मन्दिर बनाने के नियम पुराने मन्दिरों को, बनवाने और सुधारने से मुक्ति होजाती है मन्दिर में इस प्रकार जाकर बैठे बड़े भाव प्रीति से पूजा करे नमो जिनेन्द्रेभ्यः' इत्यादि मन्त्रों से स्नानादि कराना । और जलचन्दनपुष्पधूपदीपनै. इत्यादि से गन्धादि चढ़ावें । रत्नसार भाग के १२ ३ पष्ठ में मूर्तिपूजा का फल यह लिखा है कि पुजारी को राजा व प्रजा कोई भी न रोक सके ॥ ( समीक्षक ) ये बातें सब कपोलकल्पित हैं क्योकि बहुत से जैन, पुजारियों को राजादि रोकते हैं। रत्नसार० पृष्ठ ३ में लिखा है मूर्तिपूजा से रोग पीड़ा और महादोष छूट जाते हैं एक किसी ने ५ कड़ी का फूल चढ़ाया उसने १८ देश का राज पाया उसका नाम कुमारपाल हुअा था इत्यादि सब बाते कृठी और मुख को लुभाने की हैं क्योंकि अनेक जैनी लोग पूजा करते २ सेगी रहते हैं। और एक बीघे का भी राज्य पाषाणादि मूर्तिपूजा से नहीं मिलता ! और जो पाच कौड़ी की फूल चढाने से राज्य मिले तो पांच २ झीही के फूल चढ़ा के मव भूगोल का राज्य क्यों नहीं कर लेते हैं और राजदंड क्यों भोगते हैं ? और जो मूर्तिपूजा