पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/४३४

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। ४२८ •~• •••••• | सत्यार्थप्रकाश. !! माने । इनमें से पहिला माध्यमिक सर्वशून्य मानता है अर्थात् जितने पदार्थ हैं वे ' सब शून्य अर्थात् आदि में नहीं होते अन्त में नहीं रहते, मध्य में जो प्रतीत होता है। वह भी प्रतीत समय में है पश्चात् शून्य होजाता है, जैसे उत्पत्ति के पूर्व घट नहीं था । अध्वंस के पश्चात् नहीं रहता और घटज्ञान समय में भासता और पदार्थान्तर में जान जाने से घटज्ञान नहीं रहता इसलिये शून्य ही एक तत्व है। दूसरा “योगाचार' जो वाह्य शून्य मानता है अर्थात् पदार्थ भीतर ज्ञान में भासते हैं बाहर नहीं जैसे घटज्ञान आत्मा में है तभी मनुष्य कहता है कि यह घट है जो भीतर ज्ञान न हो तो नहीं कह सकता ऐसा मानता है। तीसरा सौत्रान्तिक जो वाहर अर्थ का अनुमान मानता है क्योंकि बाहर कोई पदार्थ साङ्गोपाङ्ग प्रत्यक्ष नहीं होता किन्तु एकदेश प्रत्यक्ष होने से शेय में । अनुमान किया जाता है इसका ऐसा मत है। चौथा वैभाषिक' हैं उसका मत बाहर पदार्थ प्रत्यक्ष होता है भीतर नहीं हैं वे ‘अयं नीलो घट." इस प्रतीति में नीलयुक्त घटाकृति वाइर प्रतीत होती है यह ऐसा मानता है । यद्यपि इनका आचार्य बुद्ध एक है तथापि शिष्यों के वुद्धिभेद मे चार प्रकार की शाखा होगई है जैसे सूर्यास्त होने में चार पुरुष परस्त्रीगमन और विद्वान् सत्यभायणादि श्रेष्ठ कम्मं करते हैं। समय एक परन्तु अपनी २ बुद्धि के अनुसार भिन्न २ चेष्टा करते हैं अब इन पर्वोक्त चारों में माध्यमिक सबको क्षणिक मानता है अर्थात् क्षण २ में बुद्धि के परिणाम होने से जो पृर्वक्षण में ज्ञात वस्तु था वैसा ही दूसरे ऋण में नहीं रहता इसालये सबको क्षणिक मानना चाहिये ऐसे मानता है । दूसरा योगाचार जो प्रवृत्ति है सो सब दु.खरूप है क्योंकि प्राप्ति में संतुष्ट कोई भी नहीं रहता एक की प्राप्ति में दूसरे को इच्छा बनी ही रहती है इस प्रकार मानता है। तीसरा मौत्रान्तिक सर्व पदार्थ अपने २ लक्षणों से लक्षित होते हैं जैसे गाय के चिन्हों से गाय और बोड़ो के चिन्हों से घोड़ा ज्ञात होता है वैसे लक्षण लक्ष्य में सदा रहते हैं ऐमा कहता है । चौथा “वैभाषिक शून्य हाँ को एक पदार्थ मानता है प्रथम माध्यमिक सवको शून्य मानता था उसी का पक्ष वैभाषिक का भी है इन्यादि वौद्धा में बहुतमे विवाद पक्ष इस प्रकार चार प्रकारको भावना मानते हैं। उत्तर ) जो सब शून्य हो तो शून्यका जाननेवाला शून्य' नहीं हो सकता और जो सब शून्य होवे तो शून्य का शुन्य नहीं जान सके इसलिये शून्य , ६,इन। यौरव दो पदार्थ सिद्ध होते हैं और जोयोगाचार बाह्य शून्यत्व मानता है तो ; १५ म के भीतर होना चाहिये जा कहे कि पर्वत भीतर ६ ना उसके हृदय में पर्वत ।