पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/४२७

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= = ० , ० -० ले , $ 14 -1 ० अथ हुदासमुल्लासाः ॥ selissssssssssssssssssss अथ नास्तिकमतान्तर्गतचारवाकबौद्धजैनमतखण्डनमण्डन विषयान् व्याख्यास्यामः ॥ | कोई एक वृहस्पति नामा पुरुष हुआ था जो वेद, ईश्वर और यज्ञादि उत्तम कम को भी नहीं मानता था देखिये उनका मत’--- यावज्जीवं सुखं जीवेन्नास्ति मृत्योरगोचरः। भस्मीभूतस्य देहस्य पुनरागमनं कुतः ॥ कोई मनुष्यादि प्राणी मृत्यु के अगेचर नहीं हैं अर्थात् सबको मरना है इसलिये जबतक शरीर में जीव रहे तब तक सुख से रहे। जो कोई कहे कि धर्माचरण से कष्ट होता है जो धर्म को छोडे तो पुनर्जन्म में बड़ा दु ख पावे | उसको ‘चारवाक उत्तर देता है कि अरे भोले भाई । जो मरे के पश्चात् शरीर भस्म होजाता है कि जिसने खाया पिया है वह पुन. संसार मे न आवेगा इसलिये जैसे होसके वैसे आनन्द में रहो लोक में नीति से चलो, ऐश्वर्य को बढ़ाने और उससे इच्छित भाग करो यही लोक समझो परलोक कुछ नहीं । देखो ! पृथिवी, जल, अग्नि, वायु इन चार भूतों के परिणाम से यह शरीर बना है इसमें इनके योग से चैतन्य उत्पन्न होता है जैसे मादक द्रव्य खाने पीने से भद् (नशा) उत्पन्न होता है इसी प्रकार जीव शरीर के साथ उत्पन्न होकर शरीर के नाश के साथ आप भी नष्ट होजाता है फिर किसको पाप पुण्य का फल होगा ३ ।। तचैतन्यविशिष्टदेह एव आत्मा देहातिरिक्त आत्मनि प्रमाणाभावात् ॥ १rs

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