पृष्ठ:सत्यार्थ प्रकाश.pdf/४२६

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४२० सत्यार्थप्रकाशः ।। ।। s == = = = .... == .... ...... .. -: .. = के अन्य सर्व वालों को अपूर्व लाभ और वोध करनेवाना होगा क्योंकि ये लोग अपने पुस्तकों को किसी अन्य मतवाले को देखने पढ़ने वा लिखने को भी नहीं देते । वडे | परिश्रम से मेरे और विशेष आर्यसमाज मुंबई के मन्त्री “सेठ सेवकलाल कृष्णदास के पुरुषार्थ से ग्रन्थ प्राप्त हुए हैं तथा काशीस्थ "जैनप्रभाकर यन्त्रालय में छपने और मुंबई में ‘‘प्रकरणरत्नाकर ग्रन्थ के छपने से भी सब लोगों को जैनियों का मत देखना सहज हुअा है। भला यह किन विद्वानों की बात है कि अपने मत के पुस्तक आप ही देखना और दूसरों को न दिखलाना, इसी से विदित होता है कि इन ग्रन्थों के वनानेवालें का प्रथम ही शंका थी कि इन ग्रन्थों में असम्भव बातें हैं जो दूसरे मतवाल देखेंगे तो खण्डन करेगे और हमारे मतवाले दूसरों के अन्य देखेंगे तो इस मत में श्रद्धा ने रहेगी । अस्तु जो हो परन्तु बहुत मनुष्य ऐसे हैं कि जिनको अपने दोष तो नहीं दीखते किन्तु दूसरों के दोष देखने में अत्युद्युक्त रहते हैं । यह न्याय की बात नहीं क्योंकि प्रथम अपने दोष देख निकाल के पश्चात् दूसरे के दोष में दृष्टि देके निकाले । अब इन बौद्ध जैनियों के मत का विषय सब सज्जनों के सम्मुख धरता हूं जैसा है वैसा विचारें | किमधिकलेखेन वुद्धिमद्वर्येषु ॥